देश में होने वाले हर छोटे-बडे चुनावों में भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को साथ लेकर ही लड़ती है। मोदी और शाह की जोड़ी ने भाजपा को कई चुनाव जिताए हैं। जहां कभी भाजपा की सरकार नहीं थी वहां भी इस जोड़ी ने अपनी मेहनत से भाजपा को सत्ता का स्वाद चखाया। ऐसे में क्या मोदी-शाह की ये जोड़ी भाजपा को चौथी बार मध्य प्रदेश में सत्ता पर काबिज कर पाएगी? हम सभी जानते हैं कि अमित शाह का चुनावी गणित अक्सर सटीक बैठता है, और मोदी भाजपा के सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं। ऐसे में अगर इन दोनों की जोड़ी ने फिर कमाल कर दिया तो कांग्रेस के लिए यह लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका साबित होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी-शाह की जोड़ी के लिए यह मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव अब तक का सबसे कठिन चुनाव साबित होगा। दरअसल, कई मायनों में अहम इस चुनाव को आगामी लोकसभा चुनावों के सेमीफाइनल के रूप में में भी देखा जा रहा है, और इसमें बेहतर करने के लिए देश के दोनों ही प्रमुख पार्टियां और कांग्रेस एड़ी, चोटी का जोर लगा रहे हैं।
जहां कांग्रेस के लिहाज से वर्तमान परिस्थिति भाजपा को टक्कर देने के लिहाज से सबसे मुफीद है तो वहीं मोदी और शाह के चुनावी रण में यह सबसे मुश्किल चुनाव है। वैसे तो मोदी और शाह की जोड़ी का चुनावी प्रदर्शन काफी बेहतर रहा और इस जोड़ी ने अपने नेतृत्व में लड़े ज्यादातर चुनावों में बेहतर नतीजे ही दिए है, हां साल 2015 जरूर इस जोड़ी को चुनावी जीत नहीं दिला सका था, जब भाजपा को बिहार और दिल्ली में मुंह की खानी पड़ी थी। और अगर इन दो चुनावों को छोड़ दें तो यह जोड़ी अपने नेतृत्व में कम से कम एक दर्जन राज्यों में भाजपा को सत्ता में लाने में कामयाब रही है। हालांकि, इन एक दर्जन राज्यों में 2 राज्य गुजरात और गोवा ही वो राज्य थे जहां भाजपा पहले से सत्ता में काबिज थी और अन्य राज्यों में अन्य पार्टियों की सरकारें थी। मगर हालिया चुनावी दौर में ऐसा पहली बार होगा जब 5 राज्यों के चुनावों में 3 राज्य भाजपा के कब्जे में हैं, जहां भाजपा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले 15 सालों से सत्ता में है तो वहीं राजस्थान में भाजपा 2013 में कांग्रेस को हराकर सत्ता में आई थी। यानी ऐसा पहली बार होगा जब मोदी और शाह की जोड़ी को 3 राज्यों में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।
इससे पहले गुजरात चुनावों में भी भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा था। उन चुनावों में भाजपा जीत जरूर गई थी, मगर इसके लिए भाजपा को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। अब फिर से भाजपा को ऐसी ही चुनौतियों का सामना मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करना पड़ रहा है। मोदी और शाह की जोड़ी के लिए परेशानी इस बात की भी है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद शायद ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश के मध्यम वर्ग में केंद्र सरकार को लेकर रोष है। देश का मध्यम वर्ग जहां पेट्रोल, डीजल के बढ़ते दामों को लेकर नाराज है तो वहीं अगड़ी जातियों का एक तबका भी एससी-एसटी एक्ट को लेकर सरकार से नाराज है और इसका असर मध्य प्रदेश में देखने को भी मिल रहा है। ऐसे में सत्ता में बने रहने के लिहाज से जहां भाजपा को सत्ता विरोधी लहर को शांत रखना होगा तो वहीं भाजपा को सर्वाधिक मदद करने वाले वोटबैंक मध्यम वर्ग को भी अपने साथ जोड़े रखने की चुनौती होगी। हालांकि मोदी-शाह की जोड़ी के रिकाड्र्स देख कर यह जरूर कहा जा सकता है कि आने वाले चुनावों में तमाम दुश्वारियों के बावजूद भाजपा सत्ता बचा पाने में सफल रहे इसकी सम्भावना दिखती है मगर यह चुनाव इस जोड़ी की कड़ी परीक्षा लेने वाली है इस बात से कोई इंकार नहीं किया जा सकता।