एक्ट्रेस तनुश्री दत्ता की ओर से वर्सेटाइल एक्टर नाना पाटेकर पर यौन शोषण का आरोप लगाने के बाद देश में ‘मी टू कैंपेन’ आजकल फिर से चर्चा में है। अक्टूबर 2017 में ट्विटर पर ‘मी टू’ मूवमेंट शुरू हुआ था, जिसमें दुनियाभर की महिलाओं ने वर्क प्लेस पर अपने साथ होने वाले यौन शोषण के बारे में खुल कर बात करनी शुरू की। अब अक्टूबर 2018 आ चुका है, यानी ‘मी टू मूवमेंट’ को लगभग एक साल का समय हो चुका है। ‘मी टू’ मूवमेंट के एक साल और वर्क प्लेस पर महिलाओं के साथ हुए यौन शोषण के आरोपों की बाढ़। सूफी सिंगर कैलाश खेर से लेकर एक्टर राइटर रजत कपूर तक, सब निशाने पर हैं।
तनुश्री के नाना पर आरोप लगाने के बाद से धीरे-धीरे एक-एक तथाकथित बड़े और इज्जतदार लोगों की कलई खुलने लगी है। तनुश्री ने नाना पाटेकर के साथ फिल्म डायरेक्ट विवेक अग्निहोत्री पर भी अशिष्ट व्यवहार का आरोप लगाया था। इन सारी बातों से बॉलीवुड अभी उभर भी नहीं पाया था कि फिल्म निर्देशक विकास बहल से लेकर लेखक चेतन भगत तक पर यौन शोषण के इल्जाम लग गए।
विकास बहल वही डायरेक्टर हैं, जिनके खाते में ‘क्वीन’ जैसी महिला प्रधान सुपरहिट फिल्म है। जिस महिला ने विकास बहल पर यौन शोषण का आरोप लगाया है, वह फैंटम फिल्म प्रोडक्शन हाउस में काम करती थी। एक इंटरव्यू में फैंटम प्रोडक्शन हाउस की पूर्व महिलाकर्मी ने विकास बहल पर मई 2015 में गोवा के एक होटल में यौन शोषण का आरोप लगाया। फैंटम प्रोडक्शन हाउस के संस्थापक फिल्मकार अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवानी, मधु मंतेना और विकास बहल हैं।
भारत में मुश्किल क्यों है ‘मी टू’ जैसे कैंपेन?
उस महिला ने 2015 में शिकायत क्यों नहीं की, कहने से पहले जान लें कि उस महिला ने उसी वक्त डायरेक्टर अनुराग कश्यप से इसकी शिकायत की थी, लेकिन तब उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। उस महिला ने 2017 में फैंटम प्रोडक्शन हाउस छोड़ दिया। उस वक्त मामले को इग्नोर करने वाले अनुराग कश्यप ने अब इस शिकायत की पुष्टि करते हुए कहा कि ‘जो भी हुआ, वह गलत था। हम लोगों ने इस मामले को ठीक से हैंडल नहीं किया। हम पूरी तरह से नाकाम रहे। मैं ख़ुद के सिवाय किसी और पर आरोप नहीं लगा सकता हूं। लेकिन, मैं अब इसे ठीक से हैंडल करने को लेकर प्रतिबद्ध हूं। मुझे उस महिला पर पूरा भरोसा है। उस महिला को मेरा पूरा समर्थन है। बहल ने जो भी किया, वह डराने वाला है। हम लोग पहले से ही चीजों को ठीक करने में लगे हैं। इस मामले में हम जितना कुछ कर सकते हैं, जरूर करेंगे।’
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि जब महिलाएं शिकायत करती हैं, तब उनको सुना ही नहीं जाता। फिर देर-सबेर उनकी आवाज जब मुद्दा बन जाती है, तब कहा जाता है ‘आज बोल रही हो, तब क्यों चुप हो गई थी? सबूत क्या है कि तुम्हारे साथ गलत हुआ? मीडिया अटेंशन पाने के लिए कर रही है सब, फुटेज मिल जाएगा, थोड़े दिन लाइम लाइट में रहेगी और क्या।’ और भी बहुत कुछ। एक पीड़ित लड़की के ‘न्याय’ पाने की उम्मीद को ‘फुटेज’ पाने में बदल दिया जाता है।
यहां जिसके साथ गलत होता है, सबूत लाने की जिम्मेदारी भी उसी पर थोप दी जाती है। यानी, जिस लड़की को सेक्सुअली हैरास किया जा रहा है, उस वक्त उसको इस बात की भी चिंता करनी चाहिए कि मैं इस घटना का सबूत कैसे इकट्ठा करूं। ये लोग तो समाज के बड़े और इज्जतदार लोग हैं। इनकी सच्चाई बताने पर सवाल तो मुझ पर ही उठेंगे।
20 साल लग गए हार्वी वाइनस्टीन पर बोलने में
2015 में जब इटली की एक मॉडल अंब्रा गितेरेज हॉलीवुड के सबसे अमीर आदमी फिल्म प्रोड्यूसर और बिजनसमैन हार्वी वाइनस्टीन पर औरतों के यौन शोषण का आरोप लगाया तो, सबने उनकी बात को हवा में उड़ा दिया। आखिरकार हार्वी वाइनस्टाइन बेहद पावरफुल आदमी था। जिसकी प्रोड्यूस की हुई करीब 300 फिल्में ऑस्कर नॉमिनेशन पा चुकी हो और उनमें से कई यह अवॉर्ड जीत भी चुकी हो, वह कोई मामूली इंसान तो हो नहीं सकता। लेकिन, 5 अक्टूबर, 2017 में रॉबर्ट फैरो नामक एक पत्रकार ने ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने कुछ ऐसा छापा, जिसने पूरे हॉलीवुड को हिला दिया। हार्वी का स्टिंग ऑपरेशन दुनिया के सामने था, जिसमें वह मॉडल के स्तन पकड़ने और मालिश करवाने की बात कर रहा था। अब उस इज्जतदार आदमी का सच पूरी दुनिया जान गई थी।
इस स्टिंग ऑपरेशन के बाद हॉलीवुड की कई एक्ट्रेसेज सामने आईं और उन्होंने ‘मी टू मूवमेंट’ के जरिये हार्वी वाइनस्टीन का काला चिट्ठा दुनिया के सामने रखना शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत 50 साल की एक्ट्रेस ऐश्ले जड ने की। उन्होंने बताया कि किस तरह 20 साल पहले हार्वी ने उसे अपने होटल के कमरे में बुलाकर मालिश करने को कहा। फिर यह भी पूछा कि क्या वह उसे नहाते हुए शॉवर में नग्न देखना चाहती है? हमारा सभ्य भारतीय समाज मानता है कि विदेशों में बहुत खुलापन है। वहां के लोगों को यौन शोषण जैसे मुद्दे को सामने लाने में कोई परेशानी नहीं होती। तो फिर एश्ले जड को हार्वी वाइनस्टीन का सच बोलने में 20 साल लग गए। इसी से पता चलता है कि हार्वी वाइनस्टीन की हैसियत क्या रही होगी।
एक बार तो बिना कोई इल्जाम लगाए, इत्मीनान रख कर उनकी बात सुनिए, जो यह कह रही है कि उनके साथ गलत हुआ है। एक तरह से देखा जाए, तो ‘मी टू’ आंदोलन अपने आप में काफी साहसी और ऐतिहासिक आंदोलन है। जो पुरुष प्रधान भारतीय समाज महिलाओं के साथ कुछ गलत होने का इल्जाम उनके ही सिर पर डाल देता है। उस पुरुष प्रधान भारतीय समाज की आंखों में देखते हुए महिलाओं ने उन्हें उनका आईना दिखाया। जो इज्जत, शर्म और लिहाज उन्हें अपने साथ हुए गलत के बारे में बोलने से रोकते थे, उन ढकोसलों की दीवार से महिलाएं अब बाहर आने लगी हैं, जो कि एक अच्छी शुरुआत है।