नवरात्रि के सातवें दिन माता भगवती के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-आराधना का विधान है। माता भगवती का यह रूप विकराल है। इनके शरीर का रंग अंधकार के समान काला है व इनके केश बिखरे हुए है। इनके गले में बिजली की समान चमक वाली माला लटकी हुई है। मां कालरात्रि के तीनों नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल एवं गोल हैं, जिनसे बिजली के समान रोशनी निकलती है। अपनी नासिका से जब भी अपनी श्वाश बाहर छोड़ती हैं, तो उसी के साथ भयंकर अग्नि भी निकलती है। माता ने यह रूप दुष्टों के विनाश तथा अपने भक्तों के कल्याण के लिए लिया था। माता के इस भयंकर एवं विकराल रूप के कारण ही उनका नाम कालरात्रि पड़ा।
मां कालरात्रि अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती है, अतः इनको शुभंकरी के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के सातवें दिन तांत्रिक क्रियाओं में सक्रिय साधकों के लिए बहुत ही अत्यधिक महत्व का है। आज के दिन साधक को सफेद रंग के कपड़े पहनने चाहिए तथा सवर्प्रथम कलश एवं उसमें उपस्थित सभी देवी-देवताओं का नाम लेते हुए उनकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद माता कालरात्रि के मंत्रों का जाप करते हुए उन्हें फूल व मिठाई अर्पित कर उनकी पूजा करनी चाहिए। कालरात्रि पूजन के दिन माता अपने भक्तों के लिए अपना द्वार खोल देती हैं तथा जो भी माता की श्रद्धा के साथ पूजा करता है, माता उसे सभी मुसीबतों और संकटां से मुक्त कर देती हैं।