अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार दबाव में है। सुप्रीमकोर्ट में मामले की सुनवाई जनवरी 2019 तक के लिए टल जाने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और साधु-संतों ने भाजपा व मोदी सरकार पर राम मंदिर निर्माण को लेकर कानून बनाने का दबाव बढ़ा दिया है। पांच राज्यों के चुनाव और फिर लोकसभा के महासमर के मद्देनजर भाजपा में भी एक वर्ग इस मुद्दे पर मोदी सरकार से दो टूक फैसला कराने का पक्षधर है। ऐसे में मोदी सरकार और भाजपा में मंदिर निर्माण को लेकर कई विकल्पों पर विचार मंथन हो रहा है।
एक विकल्प यह है कि कानून बनाकर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया जाए। इसके लिए अध्यादेश लाने का विकल्प भी है। हालांकि, मुद्दा सुप्रीमकोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन कानूनविद मानते हैं कि सुप्रीमकोर्ट में चल रहे मुकदमे का आधार बदल देने के बाद केंद्र सरकार के लिए कानून बनाने में कोई अड़चन नहीं होगी। इसके लिए अयोध्या में विवादित जमीन का अधिग्रहण कर लेने से मुकदमे का आधार बदल जाएगा और फिर सरकार के लिए अध्यादेश लाने में कोई अड़चन नहीं होगी।
अयोध्या में मात्र 2.77 एकड़ जमीन को लेकर विवाद है, उसके चारों ओर की जमीन का पहले ही अधिग्रहण किया जा चुका है। मोदी सरकार पर अध्यादेश लाने का चौतरफा दबाव है। राज्यसभा में भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए बहुमत में नहीं है, इसलिए संसद में विधेयक लाने का जोखिम सरकार नहीं उठाना चाहेगी। भाजपा के राज्यसभा सासंद राकेश सिन्हा राम मंदिर को लेकर निजी विधेयक लाने जा रहे हैं। इससे कम से कम राम मंदिर मामले में संसद में चर्चा तो हो ही जाएगी। भाजपा भी मानती है कि अध्यादेश लाने का नतीजा जो भी हो, लेकिन चुनावी साल में राजनीतिक फायदा मिलना पक्का है। इससे चुनावी माहौल भी बदल जाएगा। गौर हो कि हाल में तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय संत समिति के धर्मादेश सम्मेलन में साधु-संतों ने सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि आम चुनाव से पहले वह राम मंदिर का निर्माण शुरू करे। साधु-संतों ने धर्मादेश दिया कि मोदी सरकार राम जन्मभूमि पर कानून बनाए या अध्यादेश लाए। इससे कम किसी बात पर समझौता नहीं किया जाएगा। इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत भी सरकार पर दबाव बढ़ा चुके हैं। विहिप ने भी कुंभ तक के लिए मोदी सरकार को अल्टीमेटम दिया है।