पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने राजनीति में भी अपनी अहम पारी का आरम्भ कर दिया है और उन्होंने अपनी इस नई पारी के लिये भारतीय जनता पार्टी को चुना है. गौतम गंभीर ने क्रिकेट के मैदान पर देश के लिए अहम योगदान दिया है. जहां वो भारत की तरफ़ से एक सफल ओपनर रह चुके हैं. गंभीर अपने बेख़ौफ और आक्रामक अंदाज़ के लिये जाने जाते हैं. युवाओं को तो उनका ये अंदाज़ बेहद पसंद है. उन्हें एक ईमानदार क्रिकेटर और इंसान के रूप में देखा जाता है.
इसी विषय में दिल्ली के युवक अपूर्व भटनागर का कहना है कि गम्भीर को राजनीति में नहीं आना चाहिये था, क्योंकि उनका क्रिकेट करियर बहुत साफ़ और सफ़ेद रहा है, पर राजनीति के बारे में तो सबको पता है कि यहां कोई रास्ता सीधा नहीं जाता. दिसम्बर 2018 को गंभीर ने क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से संन्यास ले लिया था और क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद से ही गौतम गंभीर ने देश के अहम मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया देने के साथ-साथ राजनीति में रूचि लेना भी शुरू कर दिया था.
हालांकि, गंभीर के मुताबिक राजनीति में उनके आने का एक मात्र कारण देश सेवा है, क्योंकि उनका मानना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईमानदारी और देश सेवा से प्रभावित होकर ही बीजेपी की राजनीति को चुना है. जहां कुछ लोग गंभीर के इस फ़ैसले की आलोचना भी कर रहें हैं कि एक क्रिकेटर को राजनीति में नहीं आना चाहिये, तो वहीं कुछ लोग गंभीर के इस फैसले के पक्ष में खड़े दिखाई दिए.
इस विषय पर युवक शैलेंद्र का कहना था कि "ये अच्छा संकेत है हमें उनका स्वागत करना चाहिये. उन्होनें क्रिकेट में अच्छा प्रर्दशन किया है तो राजनीति में भी अच्छा कर सकते हैं. उन्हें एक मौक़ा मिलना चाहिये, ना कि सिर्फ़ इसलिये आलोचना करना कि वो एक क्रिकेटर होकर राजनीति में आ रहें हैं तो अच्छा नहीं कर पायेगें".
हालांकि राजनीति की पिच, क्रिकेट की पिच से बेहद अलग मानी जाती है. ऐसे में भले ही वो एक दिग्गज और सफल क्रिकेटर रह चुके हैं, पर राजनीति की पिच पर उन्हें काफ़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. गौतम गंभीर को राजनीति में लाने के पीछे बीजेपी के शीर्ष नेता अरुण जेटली का हाथ बताया जा रहा है जो एक तरह से उनके राजनीतिक गुरू कहलायेगें और राजनीति की पिच पर कोच की भूमिका भी निभाएंगे, जो काफी जरूरी है.