देश में चुनावी मौसम अपने चरम पर है। हर राजनीतिक पार्टियां के सांसद, नेता अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय होने लगें है। हर पार्टी इस चुनावी माहौल को अपनी ओर खींचने की कोशिश में लगी हैं। ऐसे में हमारे राजनेता कैस पीछे रह सकते है। कहा जाता है राजनेता अपने क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान रखता है। चाहे वह एक पार्टी कार्यकर्ता ही क्यों ना हो..? इस देश में चुनाव का जो माहौल बना है। उससे एक बात साफ है। इस बार का लोकसभा चुनाव हर पार्टी उम्मीदवार के लिए कांटे की टक्कर जैसा होने वाला हैं। ऐसे में हरियाणा के सिरसा लोकसभा सीट को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही है। जिससे कांग्रेस नेता और सिरसा सांसद अशोक तंवर की साख दांव पर लगी है। अशोक तंवर वहीं राजनेता है, जिन्हें सबसे कम उम्र में भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर प्रतिष्ठित किया गया। अशोक अपनी लगातार बढ़ती लोकप्रियता के कारण आज हरियाणा कांग्रेस में एक नई पहचान बनाने में सफल हुए है। तंवर कांग्रेस के उभरते नेताओं में से एक है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल के करीबी माने जाते है। जो युवा कांग्रेस के प्रभारी भी है। तंवर 1999 से छात्र संघ राजनीति में सक्रिय रहे। 2003 में अशोक एनएसयूआई के अध्यक्ष रहे। जिसके बाद एनएसयूआई दिल्ली विवि में छात्र संघ के लगातार दो बार चुनाव जीता। अपने कार्यकाल के दौरान तंवर ने अनुशासन पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया।
धीरे-धीरे अशोक तंवर का कद राजनीति में बढ़ता गया। तंवर कांग्रेस को युवा स्तर पर मजबूत करने में जुट गए। जिन्होंने युवा कार्यकर्ताओं में राहुल के विजन को आकार देना का जो काम किया। जिसका फल तंवर को 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी द्वारा हरियाणा के सिरसा लोकसभा क्षेत्र से टिकट देकर दिया गया। जिसमें अशोक ने यह सीट जीतकर कांग्रेस पार्टी सहित राहुल को अपनी ओर आकर्षित करने का काम किया। जबकि अशोक तंवर को यह चुनावी तैयारी के लिए एक माह से भी कम समय मिला था। अशोक को चुनाव लड़ाने के लिए उस समय यानि 2009 में कांग्रेस महासचिव राहुल ने खुद चुना था। जबकि 2014 मोदी लहर में अशोक अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में सवाल उठते है। क्या एक बार फिर कांग्रेस पार्टी तंवर को सिरसा लोकसभा सीट की दुबारा चुनावी मैदान में उतारेगी या फिर अशोक किसी और सीट से चुनाव लड़ना पंसद करेंगे..?