लोकसभा चुनाव में राजस्थान से सूपड़ा साफ होने के बाद कांग्रेस ने प्रदेश की कमान युवा नेता सचिन पायलट को दी। तब से सचिन पायलट लगातर कॉडर का आधार बढ़ाने के लिए जमीनी स्तर पर मेहनत कर रहे हैं। अब विधानसभा चुनाव में जनता तय करेगी कि वह अपनी मेहनत में कितने सफल हुए हैं।
मुख्यमंत्री पद के दावेदार
सचिन पायलट को कांग्रेस की जीत होने पर प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री माना जा रहा है। पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करने व सचिन पायलट और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दोनों को मैदान में उतारने से इन कयासों को बल मिला है।
संगठन को खड़ा किया
2014 में मोदी लहर के कारण पार्टी राज्य में एक भी लोकसभा सीट जीत नहीं सकी थी। इसको लेकर संगठन और कार्यकर्ताओं में निराशा का माहौल था। ऐसे मुश्किल समय में पार्टी नेतृत्व ने सचिन पायलट पर भरोसा किया और प्रदेश अध्यक्ष बनाया। तब से पायलट कड़ी मेहनत कर रहे हैं और उपचुनावों में कांग्रेस की जीत से उनकी नेतृत्व क्षमता और स्थापित हुई।
राजनीति विरासत में मिली
सचिन पायलट को सियासत विरासत में मिली हैं। पिता राजेश पायलट प्रदेश के बड़े गुर्जर नेताओं में से एक थे। उनकी पत्नी सारा जम्मू कश्मीर की राजनीति की धुरी रही शेख अब्दुल्ला परिवार से आती हैं।
26 साल में संसद पहुंचे
पायलट महज 26 साल की उम्र में संसद के लिए निर्वाचित हुए। 2004 में वह राजस्थान के दौसा लोकसभा सीट से जीते। 2009 में गठित 15वीं लोकसभा में उन्होंने अजमेर का प्रतिनिधित्व किया। 2012 से 2014 तक केंद्र में मंत्री भी रहे। लेकिन 2014 में इसी सीट से उन्हें संवर लाल जाट से मात मिली।
ताकत
- जमीन से जुड़े हुए हैं और युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं।
- पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का उन्हें करीबी माना जाता है।
कमजोरी
- प्रदेश विधानसभा के लिए पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं ऐसे में अनुभव बन सकता रोड़ा
- राजस्थान कांग्रेस में कई विरोधी धड़े, जो पायलट की राह मुश्किल कर सकते हैं।