हमारे देश में पैसों के लिए लोग कुछ भी करते नजर आते हैं। चाहे वह न्यूज चैनलों के माध्यम से झूठ को सच के रूप में परोसने की कला ही क्यों ना हो। बस पैसे आने चाहिए। किसी के जीवन से कोई प्रेम नहीं, बस पैसे चाहिए। आज जिस तरीके से हमारे न्यूज चैनल झूठ को सच के रूप में परोसते है। इससे यह साफ होता है, हर न्यूज चैलन की अपनी एक राजनीतिक विचार धारा होती है। जो उसी के अतंर्गत काम करता दिखाई देता है। 14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद, जिस तरह से हमारे न्यूज चैनलों ने इस खबर को दिखाया है। उस खबर को देखने के बाद युवाओं से लेकर हर देश वासी युद्ध की मांग करता दिखाई दिया।
चैनलों में एंकर जोर-जोर से चीखते दिखाई दिए, जैसे अगले ब्रेक के बाद मानो युद्ध की खबर आने वाली है। वहीं सोशल मीडिया पर चैनलों द्वारा कई सारे हैशटैग चलाए गए। जैसे पाकिस्तान ही नक्शे से हटा दो, बदला, आदि। मीडिया जगत की इस चाल से हमें और आपको जरा बच के रहने की जरूरत है। नहीं तो नफरत के इस सैलाब में, आप कहीं अकेला खड़ा नजर आएंगे। अपने जोश को ठंडा रखिए। कहीं जोश-जोश में आप अपना होश ना खो दें। इसलिए आपसे निवेदन है, कृपया मीडिया के इस रूख से बचें। घड़ियाल आंसू हर कोई बहा लेता है। चीख पुकार से कुछ नहीं होता। सोच-समझ कर ही फैसले किए जाते है। जिससे देश की स्थिति सामान्य बनी रहें।
इस वक्त देश में मातम छाया हुआ है, धैर्य रखने की जरूरत है। वक्त आने पर हमारी सेना जवाब जरूर देगीं।
सीआरपीएफ वाले अपनी मांगों को लेकर पिछले साल 13 दिसंबर को दिल्ली में आए थे। वो चाहते थे उन्हें सैनिक का दर्जा मिलें। उन्हें पेंशन सेवा मिले। उस वक्त हमारे न्यूज चैनल कुछ अलग ही राजनीति की टीआरपी में लगें थे। क्या किसी चैनल ने यह आवाज उठाई..? क्या किसी चैनल ने उसके विजुअल दिखाए..? नहीं। आपने किसी सीआरपीएफ सैनिक की बाइट सुनी..? जी नहीं। देश के तमाम हिस्सों में सीआरपीएफ जवानों एक साथ इकट्ठा हुए। इसके बावजूद भी उनकी कोई खबर मीडिया चैनलों का सुर्खियां और प्राइम टाइम नहीं बन पाई, क्योंकि इस मुद्दे से मीडिया को कोई फायदा नहीं होता। इसलिए भड़कने वाले टीवी न्यूज चैनलों से दूर ही रहे, तो ही भला होगा।