बाहुबली और कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजाभैया खुद लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं बल्कि अपने दो सिपहसालार को अपनी जनसत्ता पार्टी से मैदान में उतारा है. प्रतापगढ़ से अक्षय प्रताप सिंह हैं और कौशांबी से पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार मैदान में हैं. ये दोनों सीटें राजा भैया के प्रभाव वाले क्षेत्र में आते हैं. ऐसे में इन दोनों सीटों को जिताने की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर है, लेकिन जिस तरह से नरेंद्र मोदी के सहारे बीजेपी चुनावी मैदान में हैं और सपा-बसपा गठबंधन ने कड़ी चुनौती दे रही है. इसके चलते राजा भैया के दोनों सिपहसालार दोहरे चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं.
कौशांबी
कौशांबी लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. यह संसदीय सीट प्रतापगढ़ जिले की कुंडा और बाबागंज विधानसभा और कौशांबी जिले की मंझनपुर, चायल और सिराथू सीट मिलाकर बनी है. प्रतापगढ़ की दोनों सीटें रघुराज प्रताप सिंह (उर्फ राजा भैया) का काफी राजनीतिक दखल वाली हैं. यही वजह है कि राजा ने अपने करीबी पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार को चुनावी मैदान में उतारा है. शैलेंद्र कुमार 2009 में सपा से इस सीट से सांसद चुने जा चुके हैं.
राजा भैया की पार्टी और बीजेपी के बीच गठबंधन को लेकर लंबे दौर की बातचीत चली लेकिन विफल साबित हुई. इसी के बाद उन्होंने शैलेंद्र कुमार पर दांव लगाया है. ऐसे में शैलेंद्र कुमार भले ही चुनावी मैदान में हों, लेकिन उन्हें जिताने की सारी जिम्मेदारी राजा भैया के कंधों पर है. लेकिन बीजेपी ने जिस तरह से अपने मौजूदा सांसद विनोद सोनकर को एक बार फिर उतारा है. जबकि सपा ने इंद्रजीत सरोज और कांग्रेस ने गिरीश चंद्रपासी पर भरोसा जताया है, जिसके चलते कौशांबी की सियासी लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई है.
शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के वोटबैंक में सेंध लगाने में जुटे हैं. इसके अलावा राजाभैया के नाम पर बीजेपी से छिटके सवर्ण मतदाता भी उनके पाले में आ सकते हैं. शैलेंद्र के साथ मुस्लिम मतदाता भी अच्छे खासे हैं. जबकि इंद्रजीत सरोज सपा से चुनावी मैदान में उतरे हैं. सरोज दलित, यादव और मुस्लिम मतों के सहारे जीत की आस लगाए हुए हैं. वहीं, विनोद सोनकर बीजेपी के परंपरागत वोटर और मोदी मैजिक के सहारे जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं. इसके अलावा बसपा के बागी नेता गिरीश पासी को कांग्रेस ने टिकट दिया है, जो अपने वजूद को बचाने में जुटे हैं.
प्रतापगढ़
प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर भी राजा भैया की तूती बोलती है. यहां से राजा भैया के करीबी अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जनसत्ता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हैं. गठबंधन के तहत बसपा के अशोक त्रिपाठी, कांग्रेस की राजकुमारी रत्नासिंह और बीजेपी के संगमलाल गुप्ता चुनावी मैदान में हैं. हालांकि 2014 में अपना दल के खाते में गई थी और कुंवर हरिबंश सिंह जीतकर सांसद चुने गए थे. इस बार यह सीट अपना दल और बीजेपी गठबंधन के तहत यह सीट को बीजेपी को मिली है. यही वजह रही कि हरिबंश सिंह की जगह संगमलाल पर दांव लगाया गया है.
प्रतापगढ़ की सियासत की धुरी राजघरानों और सवर्ण समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती है. राजघरानों से यदि सीट बाहर गई तो भी सवर्णों का ही कब्जा रहा. यहां की राजनीति में दो बार यहां से ब्राह्मण सांसद चुने गए और सिर्फ एक बार गैर सवर्ण यहां से सांसद बन सका. सबसे ज्यादा यहां से राजपूत सांसद हुए. जिले की राजनीति में मजबूत पकड़ को देखते हुए इस सीट पर तकरीबन सभी पार्टियों ने सवर्णों पर ही दांव खेला हैं.
इस बार के लोकसभा चुनाव में सभी प्रमुख पार्टियों ने सवर्ण समुदाय के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. इनमें कांग्रेस से राजकुमार रत्ना सिंह अपने पिता राजा दिनेश सिंह की विरासत को संभालने के लिए उतरी हैं. उन्हें कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी जिताने के लिए रात दिन एक किए हुए हैं. हालांकि रत्ना सिंह इस सीट से कई बार सांसद चुनी जा चुकी हैं. 2014 में मोदी लहर में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. इस बार रत्ना सिंह राजपूत, मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाताओं के सहारे जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं.
वहीं, राजा भैया के करीबी अक्षय प्रताप सिंह जनसत्ता पार्टी से चुनाव मैदान में उतरे हैं. इससे पहले 2004 में प्रतापगढ़ से सपा से सांसद चुने जा चुके हैं, लेकिन इस बार उनकी राह मुश्किलों भरी है.अक्षय प्रताप से ज्यादा राजा भैया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. ऐसे में राजा उन्हें जिताने के लिए जमकर पसीना बहा रहे हैं, ऐसे में देखना होगा कि उनका क्षेत्र की जनता कितना भरोसा करती है. हालांकि राजा भैया के प्रभाव वाला इलाका अब प्रतापगढ़ के बजाय कौशांबी क्षेत्र में आता है. ऐसे में इस सीट से जितना आसान नहीं है.
बसपा के अशोक त्रिपाठी को उतारा है. वो ब्राह्मण, दलित और यादव मतों के सहारे जंग जीतना चाहते हैं. जबकि बीजेपी के उम्मीदवार संगमलाल गुप्ता मोदी लहर में अपनी जीत देख रहे हैं. लेकिन दोनों की राह में अक्षय प्रताप और रत्ना सिंह रोड़ा बने हुए हैं.