2014 लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात मॉडल की चर्चा पूरे जोरों पर थी, लेकिन इस बार के चुनाव प्रचार में गुजरात मॉडल की चर्चा नदारद है. आखिर क्यों? गुजरात लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी की राजनीति का गढ़ रहा है. भारत का एकमात्र राज्य है जहां बीजेपी दो दशक से ज्यादा समय से लगातार शासन में रही है. 1995 से लेकर अब तक में सिर्फ 18 महीने को छोड़ दिया जाए तो राज्य में बीजेपी लगातार शासन में है.
यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि न सिर्फ विधानसभा चुनावों में बल्कि लोकसभा चुनाव में भी राज्य में बीजेपी का ही दबदबा रहा है. 1989 के लोकसभा चुनाव से ही कांग्रेस की तुलना में बीजेपी ने ज्यादा सीटें जीती है. 2014 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस राज्य में अपना खाता भी नहीं खोल पायी थी और दूसरी तरफ बीजेपी ने सभी 26 सीटों पर भारी जीत दर्ज की थी. जो कि यह दर्शाने के लिए भी पर्याप्त है कि बीजेपी कि जड़ें राज्य में कितनी गहरी और मजबूत है.
कांग्रेस की कमजोरी
इसका एक सीधा सा जबाब यह होता है कि कांग्रेस के पास कोई मजबूत नेता नहीं है. राज्य में जो कि नरेंद्र मोदी कि लोकप्रियता का मुकाबला कर पाए. हालांकि यह बात पूरी कहानी बयान नहीं करती है क्योंकि मोदी के मुख्यमंत्री बनने से पहले भी राज्य में बीजेपी काफी मजबूत रही है.
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी कमजोरी, राज्य में 1980 के दशक की राजनीति है. जब 1985 में राज्य में माधव सिंह सोलंकी नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ओबीसी आरक्षण लागू की. उसके बाद से राज्य में बड़े पैमाने पर आरक्षण के खिलाफ आंदोलन हुए और राज्य को कई बार कर्फ़्यू का सामना करना पड़ा. राजनीतिक आंदोलनों की वजह से शहरी जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गई, जिसका फायदा बीजेपी ने उठाना शुरू किया, और शहरों में बीजेपी इतनी मजबूत हो गई कि 2017 के विधानसभा चुनाव में पटेल आंदोलनों, ग्रामीण इलाकों में खेती-किसानी की हालत को लेकर आक्रोश होने के बावजूद बीजेपी राज्य में अपनी सत्ता बचाने में सफल रही.
शहरी-ग्रामीण भिन्नता
गुजरात में 2014 में बीजेपी की बेहतरीन सफलता 3 साल बाद हुए 2017 विधानसभा चुनाव में नहीं दिखी. उसकी एक बड़ी वजह ग्रामीण इलाकों में बीजेपी के प्रति आक्रोश था. विधानसभा चुनाव में गुजरात के शहरी और ग्रामीण मतदाता के अलग-अलग रुझान ने विश्लेषकों का ध्यान खींचा था. ग्रामीण इलाका पहले भी और कई अन्य राज्यों में भी बीजेपी के लिए एक कमजोर कड़ी रही है और यही वजह रही थी की 2017 का मुक़ाबला काफी नजदीकी हो गया था. 2017 गुजरात विधानसभा चुनाव का अगर शहरी और ग्रामीण इलाका के अनुसार विश्लेषण करें तो ग्रामीण इलाकों में बीजेपी का प्रदर्शन न सिर्फ शहरों के मुक़ाबले काफी कमजोर थी, बल्कि पार्टी वोट और सीट दोनों मामले में कांग्रेस से पिछड़ गई थी.