अप्रैल की 10 तारीख को राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद का विवाद नए सिरे से जिंदा हो उठा जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मीडिया की ओर से हासिल किए गए गोपनीय दस्तावेजों को पुनर्विचार याचिका में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई सहित सुप्रीम कोर्ट के तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने सरकार के इस दावे को नकार दिया कि वे दस्तावेज 'चोरी से हासिल किए गए थे' इसलिए उन्हें पुनर्विचार याचिका का हिस्सा नहीं माना जा सकता. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने बीती 2 जनवरी को अदालत से द हिंदू अखबार में प्रकाशित नए साक्ष्यों के आधार पर पुनर्विचार याचिका स्वीकार करने की अर्जी दी थी.
सुप्रीम कोर्ट में 14 दिसंबर को अदालत की निगरानी में राफेल सौदे की जांच की मांग को खारिज किए जाने के बाद द हिंदू में रक्षा मंत्रालय के उन गोपनीय दस्तावेजों का प्रकाशन हुआ था. उन दस्तावेजों से पता चलता है कि 2016 में हुए 59,000 करोड़ रुपये के राफेल सौदे के बारे में मंत्रालय में असहमतियां थीं.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की गोपनीय जानकारियों के प्रकाशन पर रोक लगाने वाले शासकीय गुप्त बात अधिनियम (ओएसए) के मुकाबले प्रेस की स्वतंत्रता को ज्यादा तरजीह दी. अदालत ने कहा कि ओएसए सूचना के अधिकार का शमन नहीं करता. अदालत को ओएसए में ऐसा कुछ नहीं मिला जो 'गोपनीय का ठप्पा लगे किसी दस्तावेज के प्रकाशन अथवा उसे किसी अदालत में पेश किए जाने से रोकता हो.'
अदालत ने पुनर्विचार याचिका के लिए अभी नई तारीख नहीं दी है, लेकिन उसके ताजा फैसले ने राफेल पर विपक्ष की आग को हवा दी. इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की उस टिप्पणी पर भी रोक लगाई है जिसमें उन्होंने अदालत के फैसले को कथित नेता-पूंजीपति गठजोड़ के खिलाफ उनके 'चौकीदार चोर है' अभियान को सही साबित करने वाला फैसला बताया था. भाजपा ने राहुल गांधी के खिलाफ इस पर अवमानना याचिका भी दायर की है.
इसी दौरान, फ्रांसीसी अखबार ला मॉन्दे ने 13 अप्रैल को प्रकाशित किया कि फ्रांसीसी सरकार ने कारोबारी अनिल अंबानी की फ्रांसीसी फर्म का 1,437 लाख यूरो (1,125 करोड़ रुपए) का बकाया कर माफ किया था. यह कर माफी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 36 राफेल फाइटर जेट खरीदने की भारत की मंशा की घोषणा होने के कुछ ही समय बाद की गई थी. जेट निर्माता दासो ने 2016 में ही 59,000 करोड़ रुपये के लड़ाकू विमान सौदे से जुड़ी विविध सेवाओं के निष्पादन के लिए नागपुर में अंबानी के साथ संयुक्त उद्यम स्थापित किया था.
ला मॉन्दे की रिपोर्ट पर नई दिल्ली स्थित फ्रांसीसी दूतावास ने तुरंत खंडन जारी किया. उसमें कहा गया था कि ''फ्रांसीसी कर अधिकारियों और दूरसंचार कंपनी रिलायंस फ्लैग के बीच 2008-2012 की अवधि से संबंधित कर विवाद में एक वैश्विक समझौता हुआ था.'' वहीं, रिलायंस कम्युनिकेशंस ने सफाई दी कि यह मुद्दा करीब 10 साल पुराना था जिसमें फ्लैग फ्रांस कंपनी को 20 करोड़ रुपए से ज्यादा का परिचालन घाटा हुआ था, पर फ्रांसीसी कर अधिकारियों ने उस अवधि के लिए 1,100 करोड़ रुपए से अधिक का कर लगाया था. 'फ्रांसीसी कानून के अनुसार कर निपटान प्रक्रिया के तहत, इस मामले में अंतिम निपटान के रूप में 56 करोड़ रु. के भुगतान का पारस्परिक समझौता हुआ था.''