पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी शुक्रवार को दिल्ली में आयोजित ‘शांति, सद्भाव और प्रसन्नता की ओर: संक्रमण से परिवर्तन’ कार्यक्रम में भाल लेने पहुंचे थे। इस दो दिवसिय कार्यक्रम में बोलते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने देश की समस्याओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि ‘जिस देश ने दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और सहिष्णुता का सभ्यतामूलक लोकाचार, स्वीकार्यता और क्षमा की अवधारणा प्रदान की वहां अब बढ़ती असहिष्णुता, गुस्से का इजहार और मानवाधिकरों के अतिक्रमण की खबरें आ रही हैं।’
बता दें कि इस कार्यक्रम का आयोजन ‘प्रणब मुखर्जी फाउंडेशन’ और ‘सेंटर फॉर रिसर्च फॉर रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट’ द्वारा किया गया है। उन्होंने कहा कि ‘शांति और सौहार्द्र तब होता है जब कोई देश बहुलतावाद का सम्मान करता है, सहिष्णुता को अपनाता है और विभिन्न समुदायों के बीच सद्भावना को बढ़ावा देता है’। इसके साथ ही उन्होंने संविधान के अनुसार स्थानों और राज्य के बीच शक्ति के उचित संतुलन की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा ‘हमारे संविधान ने विभिन्न संस्थानों और राज्य के बीच शक्ति का एक उचित संतुलन प्रदान किया है। यह संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए’।
प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘उन देशों में अधिक खुशहाली होती है जो अपने नागरिकों के लिए मूलभूत सुविधाएं और संसाधन सुनिश्चित करते हैं, अधिक सुरक्षा देते हैं, स्वायत्ता प्रदान करते हैं और लोगों की सूचनाओं तक पहुंच होती है। जहां व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी होती है और लोकतंत्र सुरक्षित होता है वहां लोग अधिक खुश रहते हैं’।
गुरुनानक देव की 549वीं जयंती पर उनको श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि आज उनके शांति और एकता के संदेश को याद करना आवश्यक है। उन्होंने चाणक्य की सूक्ति को याद करते हुए कहा कि प्रजा की खुशी में ही राजा की खुशी निहित होती है। ऋग्वेद में कहा गया है कि हमारे बीच एकता हो, स्वर में संसक्ति और सोच में समता हो।
मुखर्जी ने सवाल किया कि क्या संविधान की प्रस्तावना का अनुपालन हो रहा है जो सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक न्याय, अभिव्यक्ति की आजादी और चिंतन, दर्जा और अवसर की समानता की गारंटी देती है। उन्होंने कहा कि आम आदमी की प्रसन्नता की रैंकिंग में भारत 113वें स्थान पर है जबकि भूखों की सूचकांक में भारत का दर्जा 119वां है। इसी प्रकार की स्थिति कुपोषण, खुदकुशी, असमानता और आर्थिक स्वतंत्रता की रेटिंग में है।