सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर हमेशा ही देश के वंचितों और उपेक्षितों के लिए आवाज बुलंद करती रही हैं। जब भी उपेक्षितों को अधिकार के लिए संगठित होना पड़ता है, वहां इनकी मौजूदगी रहती है। हाल ही में राजधानी दिल्ली में वह किसानों के पक्ष में आवाज बुलंद करने आईं। जंतर-मंतर पर उनसे ‘इंक्वायर इंडिया’ के लिए सुभाष चंद्र ने बात की। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश :
जंतर-मंतर और मेधा पाटकर का रिश्ता पुराना है?
-जी हां। जंतर-मंतर लोगों के लिए पर्यटन स्थल हो सकता है, लेकिन हम जैसे लोगों के लिए यह एक प्रेरणास्थल है। यहां आकर हम दिल्ली की सत्ता तक अपनी आवाज पहुंचाने की कोशिश करते हैं। मैंने कई बार यहां आंदोलन किया। अनशन किया। आंदोलन का हिस्सा रही। आज किसानों के लिए यहां आई हूं।
केंद्र सरकार कहती है कि उसने किसानों के लिए कई काम किए हैं, तो फिर क्या जरूरत आन पड़ी आज?
-वर्तमान केंद्र सरकार शुरुआत से ही कॉरपोरेट समर्थक नीतियां लागू कर रही है और उसने किसानों के लिए एक भी बड़ा कदम नहीं उठाया। भाजपा सरकार का मकसद किसानों, आदिवासियों की जमीन उद्योगपतियों के हाथों में देने का है। सरकार ने नोटबंदी के जरिये कालेधन को सफेद धन में बदलने की कोशिश की तथा नोटबंदी का असर देशभर के किसानों पर पड़ा है।
आपको लगता है इस आंदोलन का असर होगा?
-यह आंदोलन निर्णायक होगा। इस बार मजदूर और किसान अकेला नहीं है। डॉक्टर, वकील, छात्र और पेशेवर पहली बार अपनी ड्यूटी छोड़कर किसानों के साथ आए हैं और इस बार आंदोलनकारी दोनों प्रस्तावित विधेयकों को पारित करने की मांग से पीछे नहीं हटेंगे।
आपकी नजर में किसानों की बेहतरी कैसे हो सकती है?
-यह कैसी विडंबना है कि किसानों को मजदूरों से भी कम रुपये उनकी मेहनत के मिल रहे हैं। किसान महज 42 रुपये प्रतिदिन कमाता है। मोदी सरकार के द्वारा किसानों की दोगुना आय कर देने पर भी उसके किसानों को नहीं सुधरेंगे। यदि कोई सरकार और राजनीतिक दल सही मायने में किसानों की दशा सुधारना चाहते हैं, तो वह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करे। सीटू पद्धति से किसानों की फसलों का सही आकलन किया जाए। इससे उन्हें खेती में होने वाले खर्च और आय का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकेगा और उन्हें उचित आय मिल सकेगी।
क्या आपको लगता है कि मोदी सरकार ने इस ओर कोई काम किया है?
-पूर्व में भी भाजपा सरकार के चुनावी घोषणापत्र में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश से लागू करने की बात कही थी, लेकिन बाद में वह इस बात से मुकर गई। और तो और, एक याचिका की सुनवाई के दौरान मोदी सरकार ने शपथ पत्र देते हुए उसमें इस बात का उल्लेख किया कि देश में 50 प्रतिशत आबादी किसानों की है, जिसमें से महज 8 प्रतिशत किसान आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या के प्रतिशत कम होने पर क्या किसान की आत्महत्या चिंता का विषय नहीं है।
जंतर-मंतर की यह जंग परिणाम देगी?
-किसानों के प्रति नरेंद्र मोदी सरकार के उदासीन रवैये ने कृषि क्षेत्र में संकट पैदा किया और स्थिति खराब हो रही है। मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण (संशोधन) विधेयक पारित करने की कोशिश की, लेकिन विपक्षी दलों के विरोध के कारण विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हुआ। अगर भाजपा दोबारा जीत जाती है, तो वह विवादित विधेयक को पारित करने के लिए कदम उठाएगी। देश में किसानों की स्थिति बदलने की जरूरत है, लेकिन सरकार उनकी दुर्दशा की ओर सहानुभूति नहीं दिखा रही है। किसानों के साथ मोदी सरकार ने जो वादाखिलाफी की है उसे किसान माफ नहीं करेंगे। हम किसानों की मांग के साथ खड़े हैं और संसद के आगामी सत्र में किसानों द्वारा प्रस्तावित विधेयक पर यहां मौजूद सभी नेताओं के दल से समर्थन मिलेगा।