प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी लोकसभा सीट पर सपा से चुनावी ताल ठोकने वाली शालिनी यादव पूर्व केंद्रीय मंत्री की बहू हैं. दस दिन पहले तक वो कांग्रेस महासचिव और पूर्वांचल की प्रभारी प्रियंका गांधी के साथ नजर आ रही थीं, लेकिन सोमवार को कांग्रेस के हाथ छोड़कर सपा की साइकिल पर सवार हो गई.
शालिनी यादव को सियासत विरासत में मिली है. शालिनी के ससुर श्याम लाल यादव कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं, जिनका कांग्रेस ही नहीं बल्कि गांधी परिवार से कभी सीधा सरोकार हुआ करता था. इसी के चलते कांग्रेस ने शालिनी यादव को वाराणसी सीट से 2017 में मेयर का टिकट दिया था. शालिनी बीजेपी की मृदुला जायसवाल से भले ही हार गई, लेकिन एक लाख चौदह हजार वोट हासिल करने में कामयाब रही थी. इसके बाद से लगातार वो पार्टी में सक्रिय रहीं.
कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने जब प्रयागराज से काशी का दौरा किया था. इस दौरान शालिनी प्रियंका गांधी की गंगा यात्रा में उनके साथ लगी थीं. उन्होंने अपने पति वरुण यादव के साथ प्रियंका से मुलाकात की थी. इसके अलावा पश्चिम यूपी के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया से लखनऊ में मिलीं थी.
सूत्रों की मानें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से वाराणसी सीट से चुनावी मैदान में शालिनी यादव उतरना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने पार्टी से टिकट की गुहार भी लगाई थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है.शालिनी के साथ-साथ उनके पति अरुण यादव भी सपा की सदस्यता ग्रहण कर लिया है. सपा में शामिल होने के कुछ देर बाद ही अखिलेश यादव ने उन्हें वाराणसी सीट से उतार दिया, जिसके बाद अब सीधा मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, कांग्रेस के दिग्गज कमलापति त्रिपाठी, दिवंगत प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री और केंद्रीय मंत्री रहे BJP के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य व वरिष्ठतम नेताओं में से एक मुरली मनोहर जोशी भी यहां से सांसद रह चुके हैं. साल, 1957 और 1962 में कांग्रेस के रघुनाथ सिंह इस सीट से जीते थे, लेकिन 1967 में CPM के सत्यनारायण सिंह ने यहां कब्ज़ा कर लिया. उसके बाद 1971 में कांग्रेस ने राजाराम शास्त्री के जरिए इस सीट पर फिर कब्ज़ा जमाया, लेकिन 1977 में आपातकाल के चलते कांग्रेस-विरोधी लहर में भारतीय लोकदल की टिकट पर चुनाव लड़े चंद्रशेखर वाराणसी के सांसद बने.
1980 में कांग्रेस की वापसी हुई, और कमलापति त्रिपाठी ने इस सीट पर कब्ज़ा किया, और फिर 1984 में भी कांग्रेस के ही श्यामलाल यादव ने वाराणसी से जीत हासिल की. 1989 में जनता दल की टिकट से अनिल शास्त्री सांसद बने, और फिर 1991 से चार चुनाव तक यहां BJP का दबदबा बना रहा, और 1991 में शिरीष चंद्र दीक्षित के बाद 1996, 1998 और 1999 में शंकर प्रसाद जायसवाल ने जीत दर्ज की. इसके बाद 2004 में कांग्रेस ने फिर वापसी और यहां से राजेश मिश्रा सांसद चुने गए. 2009 में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी और 2014 में नरेंद्र मोदी ने जीत हासिल की थी.