पांचवे चरण के मतदान में सबकी नजरें अमेठी के ‘कुरुक्षेत्र’ पर हैं. राहुल गांधी बनाम स्मृति ईरानी की इस जंग को जीतने के लिए दोनों सेनाएं आक्रामक हैं. कांग्रेस के गढ़ को बचाने के लिए महासचिव या यूं कहें राहुल की सेनापति प्रियंका गांधी वाड्रा ने कमर कस ली है. अमेठी के किले को बीजेपी भेद ना पाए इसके लिए प्रियंका ने जो रणनीति तैयार की है, वो किसी चक्रव्यूह से कम नहीं.
पहला चक्रव्यू: खुफिया युद्ध ब्रिगेड
साधारण आम नागरिक की तरह गांव के कोने-कोने में फैले हैं, कांग्रेस की युवा सेना है. प्रियंका को मालूम है कि बीजेपी ने अपनी सारी ताकत अमेठी में झोंक रखी है. शत्रु की हरकतों पर नजर रखने के लिए प्रियंका ने पार्टी की यूथ ब्रिगेड को जमीन पर उतारा है. यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के 500 कार्यकर्ताओं की टीम अमेठी लोकसभा क्षेत्र के चप्पे पर मौजूद है. हर एक विधान सभा क्षेत्र में 20 लोग कार्यरत हैं. इन 20 लोगों को भी 5-5 की संख्या में बांटा गया है. ये 5 लोग विधानसभा के 4 अलग-अलग जोन में जाकर बीजेपी की बैठकों पर नजर रखते हैं. ये अपनी रिपोर्ट जोन के हेड को देते हैं.
दूसरा चक्रव्यूह: विधान सभा कमांडर
अमेठी की पांच विधान सभाओं के लिए एक कमांडर है, जो अपनी टुकड़ी को संभालता है. राजीव गांधी के समय से चले आ रहे ये विधानसभा कोऑर्डिनेटर राहुल गांधी के सांसद और जनता के बीच पुल का काम कर रहे हैं. जनता की नराजगी, शिकायतों से लेकर उनकी सहायता के लिए सही व्यवस्था इनके जिम्मे हैं. ये सीधे प्रियंका को रिपोर्ट करते हैं. पांचों क्षेत्र की डेली रिपोर्ट पर रात के दस बजे चर्चा होती है. देर रात फिर यह तय होता है कि बीजेपी की चाल को काउंटर कैसे करना है? यही वजह है की जहां-जहां स्मृति ईरानी की सभा हुई हैं वहां-वहां प्रियंका ने भी बैठके ली हैं.
तीसरा चक्रव्यूह: कभी बिटिया, कभी दीदी
नुक्कड़ सभा और डोर टू डोर के जरिए इमोशनल अपील कर रही हैं प्रियंका. कभी बेटी बनकर तो कभी दीदी भनक...... लोगों डांट खाने को भी तैयार हैं वो. वहीं दुसरी ओर बीजेपी पर निशाना साध अमेठी के सम्मान को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा रही हैं. आरोप है कि जनता को पैसे बांटे जा रहे हैं और प्रधानों को 20000 रुपये घूस दी जा रही है. यही नहीं प्रधानों से मिलकर उनको समझाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस से भावनात्मक जुड़ाव रखने वालों को यह बताया जा रहा है कि घूस उनके स्वाभिमान को ठेस है और इसलिए यह पैसा वह वापस लौटा दें. लोगों की नाराजगी को दूर करने के लिए प्रियंका प्रधानों के घर जाकर उनको गांधी परिवार से पुराने रिश्ते नाते की याद दिलाती हैं. यह वह लोग हैं जो पुराने कांग्रेसी थे लेकिन पार्टी से नाराज होकर बीजेपी के पाले में चले गए हैं.
पांचवा चक्रव्यूह: वोट इंफ्लुएंसर पर नजर
राहुल गांधी के नाम की घोषणा होने के बाद ही प्रियंका जब अमेठी आई तो उन्होंने समाज का प्रतिनिधितव करने वाले वरिष्ठ लोगों की एक अलग बैठक ली. मकसद अलग-अलग समुदाय वर्ग और तबके के वोटरों पर असर डालते हैं उन वरिष्ठ लोगों को कांग्रेस की विचारधारा और राहुल गांधी के प्रति थोड़ा नर्म करना. बैठक में जिला पंचायत, टाउन काउंसलर और बीडीसी भी शमिल थे.
छटा चक्रव्यूह: वर्कर कॉन्फिडेंस बिल्डिंग
प्रियंका ने इस बार अमेठी आकर सबसे पहले वर्कर के तीन बैठके लीं. अमेठी के लगभग 1700 गांव से कर्मचारी को बुलाया गया. पार्टी के 400 बड़े काम और 4000 छोटे काम की लिस्ट उनको थमाई गई. ताकी वो बीजेपी के तीखे हमले से बैक फुट पर ना आए. प्रियंका गांधी लगातार कार्यकर्ताओं के सम्पर्क में हैं और उनको तवज्जो देकर उनका आत्मविश्वास बढ़ाने में लगी हैं. इसके साथ ही बूथ कमेटियों को टारगेट दिया गया है कि ज्यादा से ज्यादा वोटर को घर से निकलने के लिए प्रोत्साहित करें. प्रियंका की कोशिश की इससे बार का वोट प्रतिशत 2014 के 52 फीसदी को पार कर.
सातवां चक्रव्यूह: सोशल मीडिया की सेना
अमेठी में युवा वोटर निर्णायक हैं. यही वजह है अमेठी में सोशल मीडिया के लिए अलग वाररूम बनाया गया है. सोशल पर वोटरों को साधने के लिये एनएसयूआई की सोशल मीडिया टीम 24 घंटे जुटी हैं. इनको अमेठी की चुनावी कैंपेन को लोकलाइज करने की ज़िम्मेदारी दी गई है फेसबुक और व्हाटसअप के जरिये. हर गांव के एक्टिव मेंबर को रोज वीडियों और मैसेज भेजे जाते हैं जो अपने ग्रुप में बढ़ाता है. इसमें न्याय से लेकर कांगेस के चुनावी वादों से जुड़ी जानकारी होती है.
प्रियंका अक्सर पार्टी के अमेठी- रायबरेली मॉडल को उत्तर प्रदेश में लागू करने की बात करती हैं. वो भी ये जानती अमेठी के नतीजे पर ना सिर्फ उनकी कार्यशैली का सर्टिफिकेट होंगे बल्कि उनके इस मॉडल की असल अग्निपरीक्षा... जिस पर निर्भर है गांधी परिवार का भविष्य.