छठे चरण का चुनाव प्रचार आज थम जाएगा. इस चरण में सबकी नजर यूपी की वीवीआईपी सीट आजमगढ़ पर है. इस सीट से खुद अखिलेश यादव मैदान में हैं. हालांकि, अखिलेश अभी तक यहां चुनाव प्रचार करने सिर्फ 2 बार गए हैं. पहली बार नामांकन करने के दौरान और दूसरी बार बसपा प्रमुख मायावती के साथ संयुक्त रैली को संबोधित करने. प्रचार के आखिरी दिन अखिलेश कई जनसभाओं को संबोधित करने जाने वाले थे, लेकिन ऐन वक्त पर प्रोग्राम रद्द कर दिया गया. अब ऐसे में सवाल उठता है कि आजमगढ़ में अखिलेश के चुनाव प्रचार की कमान किसने संभाल रखी है?
अखिलेश यादव को आजमगढ़ से जीत दिलाने की जिम्मेदारी मुलायम फैमिली के यूथ कैडर ने संभाल रखी है. आजमगढ़ संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें (गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ और मेहनगर) आती हैं. 2017 में इनमें से 2 सीटों पर बसपा और 3 सीटों पर सपा जीती थी. हर विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी एक बड़े नेता को दी गई है. इसके अलावा सपा और बसपा के संगठन के कार्यकर्ताओं को हर बूथ की जिम्मेदारी गई है.
मुलायम फैमिली की यंग बिग्रेड का प्रचार
कई दिनों से अखिलेश यादव के चचेरे भाई और बदायूं से सांसद धर्मेंद्र यादव, फिरोजाबाद से सांसद अक्षय यादव और अखिलेश के भतीजे व मैनपुरी से सांसद तेज प्रताप यादव ने कमान संभाली हुई है. मेहनगर और गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र में तेज प्रताप यादव चुनाव प्रचार कर रहे हैं. इसके अलावा सगड़ी, गोपालपुर और आजमगढ़ के कई इलाकों में धर्मेंद्र यादव ने अखिलेश के लिए प्रचार किया. धर्मेंद्र की तरह अक्षय भी आजमगढ़ में अखिलेश के लिए वोट मांग रहे हैं. इसके अलावा टीम अखिलेश के अतुल प्रधान भी आजमगढ़ में जमे हुए हैं.
स्थानीय सपा-बसपा नेताओं ने संभाला मोर्चा
मुलायम कुनबे के अलावा आजमगढ़ में अखिलेश की जीत के लिए सपा-बसपा के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता कड़ी मेहनत कर रहे हैं. इनमें पूर्व मंत्री बलराम यादव, राम गोविंद चौधरी, आजमगढ़ से विधायक और पूर्व मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव, सपा जिलाध्यक्ष हवलदार यादव, बसपा जिलाध्यक्ष अरविंद कुमार, बसपा विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली, सपा विधायक कल्पनाथ पासवान, बसपा विधायक वंदना सिंह समेत दोनों दलों के नेताओं की एक बड़ी फौज लगी हुई है.
क्या है रणनीति
दिनेश लाल निरहुआ के मैदान में आ जाने के बाद सपा ने इस सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. पिछली बार मुलायम सिंह सिर्फ 65 हजार वोटों से बीजेपी के रमाकांत यादव से जीते थे. ऐसे में सपा के सामने सीट बचाने के साथ-साथ अखिलेश की बड़ी जीत की जमीन तैयार करना चुनौती है. इसके लिए अखिलेश सरकार द्वारा आजमगढ़ में कराए गए विकास कार्यों का जनसभाओं और नुक्कड़ सभाओं में जिक्र तो किया ही जा रहा है. साथ ही एमवाई (मुस्लिम-यादव) के साथ डी (दलित) समीकरण को भी साधने की कोशिश की जा रही है. इस सीट पर दलित 31 फीसदी, यादव 17 फीसदी और मुस्लिम 12 फीसदी हैं.
यादव वोटरों के लिए खास प्लान
सपा के अधिकतर यादव नेता आजमगढ़ में अखिलेश के लिए प्रचार कर रहे हैं. वजह यह है कि इस सीट पर पिछले 30 साल से यादव उम्मीदवार (दो चुनाव छोड़कर) ही जीतते हैं. सपा की पूरी कोशिश यादव वोटों के बिखराव को रोकने की है. अखिलेश यादव ने भी अपनी आजमगढ़ रैली में सीएम योगी के उस भाषण की बात की थी, जिसमें योगी ने कहा था कि अगर संविधान न होता तो अखिलेश कहीं भैंस चराते. इसके जरिए अखिलेश ने यादवों से इमोशनल अपील की. इसी तरह सपा नेता भी इमोशनल अपील कर रहे हैं. साथ ही मुस्लिमों से उलेमा काउंसिल की तरफ जाकर अपना वोट बर्बाद न करने की अपील की जा रही है. उसने अनिल सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है.
दलित वोटरों की जिम्मेदारी बीएसपी पर
अखिलेश की जीत के लिए इस बार बीएसपी भी कड़ी मेहनत कर रही है. बसपा के पूरे संगठन के अलावा दोनों विधायक गुड्डू जमाली और वंदना सिंह भी अखिलेश के लिए वोट मांग रहे हैं. बसपा की जिम्मेदारी दलित वोटरों को सपा के पक्ष में लाना है. इसके लिए बसपा प्रमुख मायावती रैली कर चुकी हैं. अब उनके मैसेज को संगठन के लोग हर बूथ पर पहुंचा रहे हैं, ताकि दलित वोटों में बिखराव न हो सके.