अश्विनी के पिता डी. रमेश कपास की खेती करते थे और उन्होंने साल 2003 में खुदकुशी कर ली। 12 वर्षों के बाद, रमैया के पिता पी. चंद्रैया, वे भी कपास की खेती करते थे, उन्होंने साल 2015 में खुद को मौत को गले लगा लिया। दोनों ही किसानों की खुदकुशी की एक ही वजह थी- ऋण न चुका पाना। तेलंगना के वारंगल जिले से आई दो लड़कियां अपने मृत पिता की फोटो हाथ में लेकर गुरूवार को रामलील मैदान में उन किसानों के साथ मार्च कर रहे थे जो ‘किसान मुक्ति मोर्चा’ के बैनर तले राजधानी में किसान दो दिवसीय प्रदर्शन में हिस्सा लेने आए हैं। साथ ही, संसद में कृषि समस्या पर बहस के लिए तीन हफ्ते के विशेष सत्र की मांग कर रहे हैं।
अश्विनी नाम के एक मजदूर ने टूटी फूटी हिंदी और अंग्रेजी में बोलते हुए कहा- “हमने कुछ एकड़ जमीन पट्टे पर लेकर उसमें कपास की खेती की। हमें इसमें कोई फायदा नहीं हुआ और मेरे पिता जमीन के मालिक को पैसा चुकान में असमर्थ थे। इसलिए, वे इस भार को बर्दाश्त नहीं कर पाए और खुदकुशी कर ली।”
बीस वर्षीय अश्विनी और रमैया की तरह देश भर से आए हजारों किसानों ने महाराष्ट्र के मुंबई में प्रदर्शन के करीब एक हफ्ते बाद ठीक उसी तरह शांतिपूर्ण मार्च में दिल्ली के रामलीला मैदान में हिस्सा लिया। कई किसान नेता सेंट्रल दिल्ली के जंतर-मंतर में अपना संबोधन कर रहे हैं। इसके साथ ही, कई रानजीतिक दलों के प्रतिनिधि दो दिवसीय किसान मुक्ति मोर्चा में अपना भाषण देंगे, जहां पर संसद में कृषि संकट पर 21 दिनों के विशेष सत्र की मांग की जा रही है।
बता दें कि ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने दावा किया कि यह देश में हुए सबसे बड़े प्रदर्शनों में से एक होगा। समिति के संयोजक हन्नान मोल्लाह ने बताया कि मार्च और धरना-प्रदर्शन के बाद ग्रामीण इलाके से आने वाले प्रमुख गायक और कवि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों की समस्याएं रखेंगे। मोल्लाह ने कहा कि इन शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में देश के 207 छोटे-बड़े किसान संगठन शामिल हैं। यह भारत के इतिहास में पहला मौका होगा, जब 200 से ज्यादा किसान संगठन एक बैनर के तले विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।