भारत में बम धमाकों की बात नई नहीं है। हर बार बम धमाकों के बाद ही सुरक्षाकर्मी सक्रिय होते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि हर धमाके के बाद ही जांच की जाती है और कुछ की गिरफ्तारी के बाद मामला फिर ढाक के तीन पात की तरह हो जाता है। कहने का मतलब यह है कि फिर हमारे सुरक्षाकर्मी निश्चिंत हो जाते हैं। अगर यह सच नहीं होता, तो भारत में अब तक जितने भी बम धमाके हुए हैं, अगर उस पर पहले से ही हमारे सुरक्षाकर्मी अपनी पैनी निगाह रखते, तो ऐसे हादसे नहीं होते। ऐसे में इन्हें सुरक्षा में चूक कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।
विदित हो कि अक्सर धमाके उसी स्थान पर किए जाते हैं, जहां ज्यादा भीड़ होती हैं, क्योंकि हमलावरों का मुख्य उद्देश्य आतंक फैलाना होता है। यह अलग बात है कि कभी-कभी ऐसे हमलावर समय से पहले पकड़े भी जाते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। अगर हम भारत में हुए धमाकों पर गौर करें, तो पाते हैं कि 13 जुलाई, 2011 को मुंबई में तीन स्थानों पर हुए बम धमाकों में 19 की मौत हो गई थी, जबकि कई घायल हो गए थे। इसी तरह 19 सितंबर, 2010 को अज्ञात बंदूकधारियों ने दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों से पहले जामा मस्जिद के बाहर विदेशी पर्यटकों की एक बस को निशाना बनाया था, जिसमें दो विदेशी नागरिक घायल हुए थे। बेंगलुरु में 17 अप्रैल, 2010 को चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुए दो बम धमाकों में 15 लोग घायल हुए थे, तो 10 फरवरी, 2010 को पुणे की जर्मन बेकरी में हुए बम धमाके में नौ लोग मारे गए थे और 45 घायल हुए थे। मुंबई में 26-29 नवंबर, 2008 को भारत का सबसे भयावह आतंकी हमला हुआ। ताज और ओबेरॉय होटलों और सीएसटी टर्मिनस पर हुए आतंकी हमलों में 170 लोग मारे गए थे, जबकि 200 अन्य घायल हो गए थे। असम मे 30 अक्टूबर 2008 को एक साथ 18 जगहों पर हुए बम धमाकों में 70 से अधिक लोग मारे गए थे और सौ से अधिक घायल हो गए थे।
इसी तरह इम्फाल में 21 अक्टूबर, 2008 के मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर पर हुए हमले में 17 की मौत हुई थी, तो 29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में मक्का मस्जिद के बाहर बम धमाके में पांच लोग मारे गए थे। दिल्ली में 13 सितंबर, 2008 को कई जगहों पर हुए बम धमाकों में 26 लोग मारे गए थे, वहीं अहमदाबाद में 26 जुलाई, 2008 को दो घंटे के भीतर 20 बम विस्फोट होने से 50 से अधिक लोग मारे गए थे। सूरत और बडोदरा से भी बम मिले थे। जयपुर में 13 मई, 2008 को सीरियल ब्लास्ट में 68 लोग मारे गए थे और अनेक घायल हुए, तो पहली जनवरी 2008 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कैंप पर हुए हमले में आठ लोग मारे गए थे। लखनऊ, फैजाबाद, वाराणसी में 23 नवंबर, 2007 को उत्तर प्रदेश के तीन शहरों में हुए धमाकों में 13 मारे गए थे और कई लोग घायल हुए थे। 11 अक्टूबर, 2007 को राजस्थान के अजमेर शरीफ में हुए धमाके में दो मारे गए थे, जबकि र कई घायल हुए थे। 25 अगस्त, 2007 के आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुए धमाके में 35 मारे गए थे और कई घायल हुए थे। 19 फरवरी, 2007 को भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में हरियाणा में धमाके हुए थे, जिसमें 66 यात्री मारे गए थे।
इन आंकड़ों पर यदि हम गौर करें, तो हमें यह बात समझ नहीं आती कि आखिर ये दहशतगर्द इस तरह की वारदात को अंजाम कैसे दे देते हैं और यह किस तरह से हमारे यहां सक्रिय हो जाते हैं। जाहिर सी बात है, कहीं-न-कहीं कोई चूक हो रही है, जिसे सुधारने की आवश्यकता है।
बहरहाल अमृतसर में रविवार को राजासांसी स्थित अदलीवाला गांव में निरंकारी भवन पर आतंकी हमले के बाद गृह मंत्रालय ने समीक्षा बैठक दिल्ली में गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में बुलाई गई। बैठक में आईबी, रॉ और एमएचए के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि गत दिवस राजासांसी के समीप गांव अदलीवाल में हुए बम धमाके में 3 लोग मारे गए, जबकि 22 लोग घायल हो गए थे। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इस हमले की जांच की जा रही है।
सुरक्षा एजेंसियां तो अपना कार्य करेंगी ही, लेकिन हमारे पुलिस के जवानों को भी इस दिशा में सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। आज अगर हम दिल्ली शहर को ही लें तो यहां कई ऐसे मोहल्ले हैं, जहां अनगिनत रेहड़ी-पटरियां लगाई जाती हैं और सड़कों का इस तरह अतिक्रमण कर लिया जाता है कि लोगों का पैदल चलना तक दूभर हो जाता है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि इन सड़कों का अतिक्रमण किसके इशारे पर किया जाता है और किनका वरदहस्त इन्हें प्राप्त होता है। महज चंद पैसों की कमाई के कारण किसी भी मोहल्ले को भीड़ में झोंक देना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इन अतिक्रमणकारियों की भी पूरी लिस्ट किसी थाने के पास नहीं होती। ऐसे में संभव है कि कोई भी आतंकी यहां रेहड़ी-पटरी लगाने का कार्य कुछ दिनों तक करे और फिर उसी इलाके को निशाना बना दे, क्योंकि आतंकियों की न कोई जाति होती है, और न मजहब। उनका धर्म सिर्फ आतंक फैलाना होता है।