समुद्र में बढ़ी भारत की धमक, स्कॉर्पिन सीरीज की चौथी पनडुब्बी INS वेला लॉन्च

समुद्र में बढ़ी भारत की धमक, स्कॉर्पिन सीरीज की चौथी पनडुब्बी INS वेला लॉन्च Date: 07/05/2019
आधुनिक तकनीक और मशीनरी से लैस स्कॉर्पिन सीरीज की सबमरीन वेला सोमवार को लॉन्च की गई. इससे समुद्र में भारत की धाक और बढ़ गई है. अधिकारियों ने बताया कि कमीशंड से पहले भारतीय नेवी ने इसे कई पैमानों पर परखा. यह चौथी सबमरीन है, जिसे मजगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) ने लॉन्च किया है. प्रोजेक्ट 75 के तहत 6 सबमरीन बनाने पर काम चल रहा है. एमडीएल फ्रांस के एमएस नेवल ग्रुप (DCNS) के साथ मिलकर सबमरीन बनाने और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर काम कर रहा है. बताया जा रहा है कि आईएनएस वागीर और आईएनएस वागशीर का काम भी मैन्युफैक्चरिंग की एडवांस स्टेज पर है और जल्द ही इन्हें भी लॉन्च किया जाएगा.
 
एमडीएल के एक अधिकारी ने बताया, समुद्र की सुरक्षा करने के लिए हमने आधुनिक मशीनरी और तकनीक वाली वेला को लॉन्च किया है. आईएनएस वेला को पहली बार भारतीय नेवल सर्विस में 31 अगस्त 1973 को कमीशंड मिला था. इसने 37 साल तक समुद्र में दुश्मनों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया. जब 25 जून 2010 को इसे डीकमीशंड किया गया तो उस वक्त यह देश की सबसे पुरानी सबमरीन थी.
 
क्या है वेला की ताकत
 
जैसे ही भारतीय नौसेना को सभी 6 सबमरीन मिल जाएंगी, उसकी धाक समुद्र में कई गुना बढ़ जाएगी. वेला कई अत्याधुनिक तकनीक से लैस है. यह सबमरीन स्कॉर्पिन एंटी-सरफेस वारफेयर, खुफिया जानकारी हासिल करना, माइन्स बिछाने और एरिया सर्विलांस के अलावा कई खासियतों से लैस है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साल 2005 में डीसीएनएस के साथ 23,652 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट का करार किया था. इस सीरीज की पहली पनडुब्बी साल 2012 में मिलनी थी, लेकिन यह प्रोजेक्ट लटक गया. पिछले साल लंबे इंतजार के बाद आईएनएस कलवरी को नौसेना में शामिल किया गया था, जो स्कॉर्पिन सीरीज की पहली पनडुब्बी थी. बताया जा रहा है कि आईएनएस खंडेरी और आईएनएस कलंज अगले महीने नेवी को मिल जाएंगी.
 
चीन से है खतरा
 
नेवी लगातार अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश में लगी है. आईएनएस अरिहंत के रूप में भारत को पहली न्यूक्लियर सबमरीन पिछले साल दिसंबर में मिली थी. इसके बाद भारत अमेरिका, चीन, फ्रांस और रूस व चीन जैसे देशों की श्रेणी में शामिल हो गया था. लेकिन इसमें भी काफी लंबा वक्त लग गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 1998 में इसके डिवेलपमेंट का काम शुरू हुआ और 2009 में इसका पहला ट्रायल किया गया. जिस तरह चीन साउथ चाइना सी के बाद हिंद महासागर में अपनी धमक बढ़ा रहा है, उसे देखते हुए नेवी के पास अत्याधुनिक हथियारों का होना बेहद जरूरी है.

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