इस बार गुरु नानकदेव जी की जयंती 23 नवंबर को मनाई गयी। इस मौके पर आज हम आपको एक ऐसे गुरुद्वारे के बारे में बता रहे हैं, जिसे देखने के लिए भारतीयों को दूरबीन की मदद लेनी पड़ती है। पाकिस्तान के नारोवाल जिले में अवस्थित है यह गुरुद्वारा। इसका नाम है करतारपुर साहिब। बताया जाता है कि गुरु नानकदेव जी ने ही करतारपुर को बसाया था और यहीं उनकी मृत्यु भी हुई थी। यहीं पर गुरु नानकदेव की समाधि भी है।
चूंकि यह समाधि पाकिस्तान में है, इसलिए भारतीय नागरिकों को करतारपुर के दर्शन के लिए वीजा की आवश्यकता होती है। जो लोग पाकिस्तान नहीं जा पाते, वे भारतीय सीमा में डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा शहीद बाबा सिंद्ध जैन रंधावा में दूरबीन की मदद से करतारपुर साहिब का दर्शन करते हैं। यह स्थल भारतीय सीमा से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है।
भारत और पाकिस्तान के बॉर्डर के नजदीक बने इस गुरुद्वारे के आसपास अक्सर हाथी घास काफी बड़ी हो जाती है, जिसे पाकिस्तान अथॉरिटी छंटवाती है, ताकि भारतीय सीमा से यहां का दर्शन किया जा सके। कहा जाता है कि तत्कालीन गवर्नर दुनी चंद की मुलाकात गुरु नानकदेव जी से होने पर उन्होंने 100 एकड़ जमीन गुरु साहिब के लिए दी थी। 1522 में यहां एक छोटी झोपड़ीनुमा स्थल का निर्माण कराया गया। गुरु नानकदेव जी ने लंगर की शुरुआत भी यहीं से की। गुरु नानकदेव जी ने गुरु का लंगर ऐसी जगह बनाया, जहां पुरुष और महिला का भेद खत्म किया जा सके। यहां दोनों साथ बैठकर भोजन करते थे। करतारपुर गुरुद्वारा साहिब का भव्य निर्माण पटियाला के महाराजा सरदार भूपिंदर सिंह ने करवाया था। 1995 में पाकिस्तान सरकार ने इसकी मरम्मत कराई थी और 2004 में इसे पूरी तरह से संवारा गया।