भारतीय सनातन धर्म में पांच देवों की आराधना का महत्व दिया गया है। इन पांच देवों में आदित्य, यानी भगवान सूर्य, गणेश, देवी दुर्गा, रूद्र यानी भगवान शिव और केशव यानी भगवान विष्णु। इन सभी में सूर्य ही ऐसे देव हैं, जिनका प्रत्यक्ष दर्शन होता रहा है। सूर्य के बिना जगत अंधकारमय है। इसके बिना जीवन को गति नहीं दी जा सकती। सूर्य की किरणों से न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक रोगों का भी निवारण होता है। शास्त्रों में सूर्य की उपासना का विशेष उल्लेख मिलता है।
सूर्य की उपासना के लिए यह जरूरी होता है कि लोग सवेरे जगें और स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध व स्वच्छ वस्त्र धारण कर सूर्य देव को अर्घ्य दें। सूर्य के सम्मुख खड़े होकर अर्घ्य देने के समय जल की धारा के अंतराल से सूर्य की किरणों का जो प्रभाव शरीर पर पड़ता है, उससे शरीर में विद्यमान रोग के कीटाणुओं का सफाया हो जाता है तथा शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। सूर्य की तेज किरणों से शक्ति आती है।
भगवान सूर्य
यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि अर्घ्य दो प्रकार से दिया जाता है। अगर संभव हो तो जलाशय अथवा नदी के जल में खड़े होकर भगवान सूर्य को अंजलि अथवा तांबे के पात्र में जल भरकर अपने मस्तिष्क से ऊपर ले जाकर स्वयं के सामने की ओर उगते हुए सूर्य को जल दें। दूसरी विधि यह है कि अर्घ्य कहीं से भी दिया जा सकता है। इसके लिए किसी जलाशय की आवश्यकता नहीं होती। इसमें एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें लाल चंदन, चावल तथा यदि संभव हो, तो लाल फूल देकर अपने मस्तिष्क से ऊपर ले जाकर अर्घ्य दें।
इसमें इस बात का खयाल रखें कि आपके दिए गए अर्घ्य का जल आपके पांव के नीचे न आएं। इसके लिए आप थाली जो कांसे की हो या तांबे की इसका प्रयोग कर सकते हैं। थाली में जो जल एकत्र हो, उसे माथे पर, हृदय पर एवं दोनों बाहों में लगा लें। अगर आप कोई विशेष कष्ट से पीड़ित हों, तो सूर्य के सम्मुख बैठकर आदित्य हृदय स्तोत्र या सूर्याष्टक का पाठ करें। अगर आप सूर्य के सम्मुख नहीं बैठ सकते हैं, तो अपने घर के अंदर ही पूर्व दिशा में बैठकर इस स्तोत्र का पाठ करें। इसके पाठ से न केवल आप रोग से मुक्ति पाएंगे, बल्कि आपके शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार भी होगा।