हॉन्ग कॉन्ग में चीन के खिलाफ क्यों सड़कों पर उतर आए लाखों लोग?

हॉन्ग कॉन्ग में चीन के खिलाफ क्यों सड़कों पर उतर आए लाखों लोग? Date: 12/06/2019
हॉन्ग कॉन्ग में नए प्रत्यर्पण बिल को लेकर विरोध-प्रदर्शन जारी है. बुधवार को एक बार फिर चीन में प्रत्यर्पण की अनुमति देने वाले कानून के खिलाफ हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए जिसके बाद प्रशासन ने बिल पर संसद में बहस को स्थगित कर दिया है. सड़कों पर जमा हुए लोग 'हॉन्ग कॉन्ग! हॉन्ग कॉन्ग!' के नारे लगा रहे थे.
 
1997 तक ब्रिटिश उपनिवेश रहा हॉन्ग कॉन्ग 'एक देश, दो व्यवस्थाएं' के तहत चीन को सौंप दिया गया था लेकिन हॉन्ग कॉन्ग को राजनीतिक और कानूनी स्वायत्तता मिली हुई है. आलोचकों को डर है कि इस बिल की वजह से हॉन्ग कॉन्ग की स्वतंत्र कानूनी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और इसके नागरिकों को केवल शक के आधार पर ही ट्रायल के लिए मुख्यभूमि चीन भेज दिया जाएगा.
 
क्या है विवादित प्रत्यर्पण बिल?
इस प्रस्तावित कानून के मुताबिक, हॉन्ग कॉन्ग में रह रहे किसी भी शख्स को किसी अपराध के शक में ट्रायल के लिए चीन भेजने की अनुमति होगी. हॉन्ग कॉन्ग सरकार ने फरवरी महीने में ताइवान में हुए एक मर्डर केस का हवाला देते हुए प्रत्यर्पण समझौते में संशोधन का प्रस्ताव दिया था. इस मामले में एक शख्स ने ताइवान में अपनी गर्लफ्रेंड का मर्डर कर दिया था और फिर भागकर हॉन्ग कॉन्ग की शरण ले ली थी, चूंकि हॉन्ग कॉन्ग की ताइवान के साथ कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है इसलिए किसी भी न्यायिक क्षेत्र में उस शख्स पर हत्या का ट्रायल नहीं चलाया जा सका.
 
हॉन्ग कॉन्ग की चीफ एग्जेक्यूटिव कैरी लैम ने कानून को जरूरी बताते हुए कहा है कि इससे हॉन्ग कॉन्ग को बेहतर तरीके से न्याय दिलाने में मदद मिलेगी और वह अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों की भी पूर्ति कर सकेगा. उन्होंने संशोधन में बीजिंग की भी भूमिका होने से इनकार किया. उन्होंने कहा, यह संशोधन केवल मुख्यभूमि पर ही नहीं बल्कि मकाउ, ताइवान व उन देशों पर भी लागू होगा जिनके साथ हॉन्ग कॉन्ग की प्रत्यर्पण को लेकर कोई संधि नहीं है.
 
क्यों है विवाद?
जब 1997 में हॉन्ग कॉन्ग को चीन को सौंपा गया था तो बीजिंग ने गारंटी दी थी कि इसके नागरिकों को कम से कम 2047 तक आजादी और स्वायत्त कानूनी व्यवस्था हासिल रहेगी. 
 
हॉन्ग कॉन्ग के नागरिकों ने प्रत्यर्पण से जुड़े संशोधन को लेकर सख्त प्रतिक्रिया दी है. आलोचकों का कहना है कि हॉन्ग-कॉन्ग में हर शख्स चीन की न्यायिक व्यवस्था के प्रति जवाबदेह हो जाएगा. लोगों को बिना किसी वजह से हिरासत में डाल दिया जाएगा और प्रताड़ित किया जाएगा.
 
सरकार क्यों इसे पास कराना चाहती है?
सरकार ने जोर देकर कहा है कि अगर ये संशोधन जल्द से जल्द पास नहीं होते हैं तो हॉन्ग कॉन्ग के निवासियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी और उनका देश अपराधियों की सुरक्षित पनाह बन जाएगी. सरकार ने कहा है कि नया कानून केवल सात साल या उससे ज्यादा सजा वाले गंभीर प्रकृति के अपराधों पर ही लागू होगा. कार्रवाई आगे बढ़ाने से पहले यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वह अपराध हॉन्ग कॉन्ग और चीन दोनों के कानून में शामिल हो.
 
लोगों को भरोसा क्यों नहीं?
पिछले कुछ वर्षों में हॉन्ग कॉन्ग की बीजिंग से अलग जाकर फैसले लेने की क्षमता कमजोर पड़ी है. इसी को लेकर नागरिकों में गंभीर अविश्वास पैदा हो चुका है. हालांकि, सरकार ने दावा किया है कि वह राजनैतिक अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगी लेकिन अधिकतर लोगों को आशंका है कि बीजिंग हॉन्ग कॉन्ग के निवासियों और विदेशी नागरिकों पर आरोप गढ़ सकता है.
हॉन्ग कॉन्ग में चीन को लोकतांत्रित सुधारों की राह में बाधा डालने और स्थानीय चुनावों में हस्तक्षेप करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. 2015 में हॉन्ग कॉन्ग के चीनी नेताओं के आलोचना करने के लिए मशहूर पांच पुस्तक विक्रेता अचानक से लापता हो गए थे. बाद में चीन के सरकारी टीवी चैनलों पर उन्हें अपने कथित जुर्म को कबूल करते हुए देखा गया.
 
हॉन्ग कॉन्ग की बैपटिस्ट यूनिवर्सिटी में एकेडेमिक माइकेल डि गोल्यर कहते हैं, हॉन्ग कॉन्ग में कुछ लोग न्यायिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर बेहद संवेदनशील हैं क्योंकि वे इसे मुख्यभूमि चीन की सरकार से सुरक्षा की गारंटी के तौर पर देखते हैं. 2012 में चीन की सत्ता में आने के बाद से राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हॉन्ग कॉन्ग में पनपे असंतोष का आक्रामक तौर पर दमन किया है जिसके बाद इस संशोधन का विरोध होना लाजिमी है.
 
अलजजीरा से 20 वर्षीय एक छात्र मार्क ने बताया कि उसने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया है क्योंकि उसे चीन पर बिल्कुल भरोसा नहीं है. मार्क ने कहा, हॉन्ग कॉन्ग में कानून का शासन लागू है. चीन बहुत ही कायर है. उन्होंने हमसे वादा किया कि वे हमें प्रत्यक्ष मताधिकार (चीफ एग्जेक्यूटिव को चुनने का अधिकार) देंगे लेकिन फिर इस वादे से मुकर गया. मार्क ने कहा कि अब हमारे पास अपनी स्वतंत्रता के खातिर लड़ने के लिए ज्यादा आक्रामक तरीके हैं.
 
सिविल ह्यूमन राइट्स फ्रंट के मुख्य आयोजक जिम्मी शैम ने कहा, अगर विवादित प्रत्यर्पण बिल पास हो जाता है तो हॉन्ग कॉन्ग के अस्तित्व का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा. हॉन्ग कॉन्ग शहर की स्वतंत्र न्यायिक व्यवस्था इसकी स्वायत्ता का स्रोत है. विश्लेषकों का कहना है कि अगर बीजिंग को आरोपियों को सौंपे जाने का अधिकार मिल जाता है तो यह कानूनी स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी.
 
कौन खुलकर आया विरोध में?
हॉन्ग कॉन्ग में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने यूएस समेत विदेशी सरकारों की तरफ से प्रस्तावित कानून और हॉन्ग कॉन्ग में अपने नागरिकों व व्यावसायिक हितों के प्रभावित होने पर चिंता जताई है. गुरुवार को ह्यूमन राइट्स वॉच समेत करीब 70 गैर सरकारी संस्थाओं ने इस प्रस्ताव के विरोध वाले खत पर हस्ताक्षर किए हैं.
 
चीन मानेगा?
बीजिंग की 2003 के बाद से इस शहर पर पकड़ और मजबूत हो गई है. चीन की अर्थव्यवस्था और वैश्विक प्रभाव बढ़ने के साथ-साथ चीन ने विपक्ष की आवाजों को और ज्यादा मजबूती से दबाया है. आंदोलन के बावजूद चीन इस प्रस्ताव का पुरजोर समर्थन कर रहा है. चीन की सरकार दावा करती है कि इस कानून के पीछे उसका कोई हाथ नहीं है लेकिन इसी सप्ताह उसने अपने एक बयान में कहा कि कुछ विदेशी ताकतें प्रत्यर्पण बिल पर शोर मचाकर देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें कर रही हैं.
 
रविवार को हुए भारी विरोध प्रदर्शनों के बावजूद सरकार ने कहा है कि वह 12 जून को बिल को दूसरी रीडिंग के लिए पेश करेगी. सरकार ने बिल कमिटी के पास ले जाए बिना ही इस बिल को आगे बढ़ा दिया है जहां सांसदों को प्रस्ताव की समीक्षा करने का एक मौका मिलता है. लोकतांत्रित तौर पर चुने गए कई सासंदों के बाहर निकालने के बाद अब संसद में सरकार समर्थक ही रह गए है. उम्मीद है कि कुछ हफ्तों के भीतर ही इस बिल को पास कर दिया जाएगा.
 

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