धनतेरस : 5 नवंबर को धनतेरस मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धनवंतरी के जन्म हुआ था। इस दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। इसका एक बड़ा कारण है कि चांदी चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन को संतोष रूपी धन देता है। जिसके पास संतोष है, वही सबसे सुखी है। लोग इस दिन दिवाली की रात को लक्ष्मी-गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं। इस दिन क्या करें, इस पर अगर बात करें, तो धनतेरस के दिन दीप जलाकर भगवान धनवंतरी की पूजा करें और उनसे प्रार्थना करें कि वह सेहत को बनाए रखें। आप इस दिन गणेश अंकित चांदी का सिक्का, कोई बर्तन या चम्मच भी खरीद सकते हैं।
छोटी दिवाली : 6 नवंबर को इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल लगाएं और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करें और विष्णु मंदिर या कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान का दर्शन करें। ऐसा करने से आप से अनचाहे जो भी पाप हुए होंगे वे सभी खत्म हो जाएंगे। ऐसी मान्यता है। शाम को यम के नाम से एक दीपक जलाएं और प्रार्थना करें कि परिवार में किसी की अकाल मृत्यु न हो। सभी अपनी आयु तक सुखमय रहें।
बड़ी दिवाली : 7 नवंबर को बड़ी दिवाली है, जो नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी, रूप चौदस और काली चौदस के रूप में भी जानी जाती है। आमतौर पर नरक चतुर्दशी से पहले घर की सजावट और रंगीन रंगोली बनाकर मनाते हैं। उत्तर भारत में लोग घी का दीपक घर के बाहर जलाकर इस दिन को बड़ी दिवाली के रूप मे मनाते हैं। दिवाली के दिन की विशेषतः मां लक्ष्मी के पूजन से संबंधित है। इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मीजी की पूजा करके उनका स्वागत किया जाता है। दिवाली के दिन जहां गृहस्थ और कारोबारी धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि और धन की कामना करते हैं, वहीं साधु-संत विशेष सिद्धियां प्राप्त करने के लिए रात में अपने तांत्रिक पूजा पाठ करते हैं। सिख धर्म में लोग दिवाली को बंदी छोर दिवस के रूप में भी मनाया करते हैं और जैन इस त्योहार को भगवान महावीर की स्मृति के रूप में मनाते हैं। दिवाली के दिन दीपदान का विशेष महत्व होता है। नारद पुराण के अनुसार इस दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गोशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है, तो उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता।