भगत और मरकाम की नियुक्ति – बस्तर और आदिवासियों को सिर्फ कांग्रेस का रिटर्न नहीं बल्कि आदिवासियों के नए नेतृत्व को खड़ा करने की कवायद

भगत और मरकाम की नियुक्ति – बस्तर और आदिवासियों को सिर्फ कांग्रेस का रिटर्न नहीं बल्कि आदिवासियों के नए नेतृत्व को खड़ा करने की कवायद Date: 30/06/2019

रायपुर. मोहन मरकाम के रुप में बस्तर को पहली बार प्रदेश की कांग्रेस का नेतृत्व करने का मौका मिला है. ये भी पहली बार हो रहा है कि कांग्रेस ने राज्य में पार्टी की कमान किसी आदिवासी को सौंपी है. मरकाम को अध्यक्ष पद देकर और सभी बड़े दावेदारों को दरकिनार कर आदिवासी अमरजीत भगत को राज्य के तेरहवें मंत्री के रुप में चुनकर पार्टी ने ये संदेश दे दिया है कि छत्तीसगढ़ में उसके एजेंडे में आदिवासी और बस्तर सबसे पहले पायदान पर है.

माना जा रहा है कि पिछले कुछ चुनाव से जिस तरीक से कांग्रेस के पक्ष में आदिवासी खड़ा है.उसे देखते हुए कांग्रेस का ये फैसला है. आदिवासियों की प्रदेश की सबसे पहली राष्ट्रीय राजनीतिक आवाज़ माने जाने वाले अरविंद नेताम का कहना है कि इस फैसले से आदिवासी इलाकों में कांग्रेस की पकड़ मज़ूबत होगी. इससे कांग्रेस ककी विचारधारा, उसके सिद्धांत और कार्यक्रम इन इलाकों तक पहुंचेगी.

नेताम का मानना है कि पहली बार बस्तर को कांग्रेस ने पार्टी में नेतृत्व दिया है. इससे कांग्रेस की पकड़ प्रदेश और देश में मज़बूत होगी. नेताम का मानना है कि समाज से किसी व्यक्ति को कोई बड़ा ओहदा दिया जाता है तो उसका असर समाज पर पड़ता है.

नेताम का इशारा उस गौंड जनजाति से था, जिसका प्रतिनिधित्व मोहन मरकाम करते हैं. गोंड समुदाय सिर्फ बस्तर में नहीं बल्कि उत्तर में सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है. गौंड समुदाय का मध्यप्रदेश तक विस्तार है. माना जा रहा है कि मोहन मरकाम के अध्यक्ष बनने से उत्तर छत्तीसगढ़ में हीरा सिंह मरकाम की पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का जनाधार टूटेगा. इसी समुदाय के कवासी लखमा पहले से ही मंत्री हैं.

राज्य की एक और प्रमुख जनजाति समुदाय उरांव को साधने की कोशिश कांग्रेस ने अमरजीत भगत के जरिए की है. बताया जाता है कि समाज के अंदर ये बात थी कि जशपुर और सरगुजा में कई सीटों पर बेहद प्रभावशाली ये आदिवासी समुदाय इस बात को लेकर अंदर ही अंदर नाखुश था कि उनके समुदाय से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है. अब उनकी नाखुशी खत्म होगी.
 
हालांकि कांग्रेस के संचार विभाग के मुखिया शैलेष नितिन त्रिवेदी मोहन मरकाम की नियुक्ति सिर्फ जातिगत फायदे के रुप में नहीं देखते. उनका मानना है कि ये पार्टी की सामाजिक बराबरी के सिद्धांत को मज़बूत कर रहा है. प्रदेश में ओबीसी के बाद पार्टी की नज़र आदिवासी नेतृत्व को तैयार करने की है. महत्वपूर्ण तथ्य है कि पिछले 15 साल में कांग्रेस ने  प्रदेश में स्व. नंदकुमार पटेल, धनेंद्र साहू, भूपेश बघेल और ताम्रध्वज के ज़रिए पूरी ओबीसी लीडरशिप तैयार कर ली है. अब उसकी नजर आदिवासी नेतृत्व पर है. जिस पर पार्टी ने पांच साल से खासतौर से काम करना शुरु किया है.
 
पार्टी ने उत्तर में अमरजीत भगत और बृहस्पति सिंह जैसे आक्रामक नेताओं को सदन से लेकर सड़क तक मौका दिया तो बस्तर में कवासी लखमा, मनोज मंडावी, दीपक बैज, मोहन मरकाम, लखेश्वर बघेल जैसे नेता तैयार किए हैं. ये नेता चुप नहीं रहते. ये नेता बोलते हैं और खूब बोलते हैं. पिछले पांच साल में इनमें से ज़्यादातर नेताओं ने विधानसभा में पूर्व की रमन सिंह सरकार को हर मुद्दे पर ज़ोरदार तरीके से घेरा.
 
अब जबकि सत्ता आ गई है. कांग्रेस आदिवासी नेतृत्व के साथ और आगे जा रही है. पार्टी ने युवा सांसद दीपक बैज को दिल्ली भेज दिया है जो बस्तर और आदिवासियों की आवाज़ को बुंलद करेंगे. इसी तरीके से संगठन की कमान मोहन मरकाम के पास होगी तो सरकार में कवासी लखमा के बाद अमरजीत भगत की एंट्री आदिवासियों की बुलंद आवाज के रुप में हो रही है.
 
इन सभी नेताओं से करीबी संबंध रखने वाले शैलेष का कहना है कि कांग्रेस के ये कदम प्रदेश में आदिवासियों के आक्रामक नेतृत्व की शुरुआत है. जिसमें बस्तर के तीन नेताओं के साथ अमरजीत भगत की आक्रमता और परिपक्वता नज़र आती है. शैलेष का कहना है कि पहले कवासी और अब मरकाम के जरिए कांग्रेस ये संदेश दे रही है कि जो पिछले कुछ चुनाव में बस्तर ने दिया. उसका वो सम्मान कर रही है.बस्तर ने लगातार दो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीताया है. लोकसभा में भी बस्तर ने एक सीट कांग्रेस को दी है. इसलिए कांग्रेस बस्तर को लौटा रही है.
 
शैलेष की बात सही भी लगती है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले महिला कांग्रेस और यूथ कांग्रेस के अध्य़क्ष बस्तर से हैं. लोहांडीगुड़ा की ज़मीने लौटाकर पार्टी ने बस्तर में विश्वास बहाली की दिशा में काम किया था. उसके बाद अडानी को रोककर भूपेश सरकार ने साबित किया है कि बस्तरिहा हित कांग्रेस के एजेंडेे में सबसे पहले है.
 
प्रदेश अध्य़क्ष की अंतिम रेस में मनोज मंडावी की तुलना में मोहन मरकाम का पलड़ा पिछले पांच साल में संगठन के लिए किए गए काम की वजह से भारी रहा. भूपेश बघेल ने पीसीसी अध्यक्ष के रुप में करीब 1 हज़ार किलोमीटर की यात्राएं की. हर पदयात्रा में मोहन मरकाम उनके साथ रहे. संगठन के हर प्रदर्शन में वो लगातार हिस्सा लेते रहे. मोहन मरकाम का निर्वविदान होना भी उनके हक में गया. जिसका ज़िक्र पीएल पुनिया ने पदभार ग्रहण करने से ठीक पहले ये कहकर किया कि उन्हें दो साल में एक भी कार्यकर्ता नहीं मिला जिसने मरकाम की शिकायत की हो.
 
मरकाम ने अध्यक्ष बनने के बाद ये बयान दिया कि सरकार जनअकांक्षाओं को पूरा नहीं करेगी तो संगठन उसे ये याद दिलाएगी. मोहन मरकाम ने ये बात कहकर उस बात को खारिज करने की कोशिश की है जिसमें कहा जा रहा था कि मरकाम केवल नाम के अध्य़क्ष रहेंगे. मरकाम ने अपना एजेंडा भी तय कर लिया है. केंद्र सरकार की मनमानी के खिलाफ मोर्चाबंदी. यानि भूपेश बघेल संगठन में नहीं रहे लेकिन कांग्रेस के तेवर नहीं बदलने वाले.

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