किंगफिशर और जेट एयरवेज के बाद अब पवन हंस हेलिकॉप्टर कंपनी की आर्थिक सेहत को लेकर कई तरह की खबरें आ रही हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पवन हंस की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि उसके बाद कर्मचारियों को सैलरी देने तक के पैसे नहीं हैं. इसलिए प्रबंधन ने 25 अप्रैल को अपने कर्मचारियों को एक सर्कुलर भेजकर सूचित किया कि कंपनी अप्रैल महीने का वेतन देने में असमर्थ है.
वेतन रोकने पर कंपनी की सफाई
लेकिन अब पवन हंस लिमिटेड ने अपने कर्मचारियों के वेतन रोकने से संबंधित खबरों पर सफाई देते हुए कहा है कि कर्मचारियों का वेतन नहीं रोका गया है. सरकार की मिनी रत्न कंपनी पवन हंस लिमिटेड के प्रवक्ता और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के उच्च सूत्रों के अनुसार कंपनी ने अपने कर्मचारियों की तनख़्वाह नहीं रोकी है.
पवन हंस के प्रवक्ता के मुताबिक केवल उन कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई है जो ओवर टाइम के पैसे के लिए अपने सामान्य कामों में लापरवाही कर रहे थे. इनमें से अधिकांश एक लाख से अधिक की वेतन वाले हैं, जिनकी तनख्वाह अंडर परफोरमेंस के कारण रोकी गई है, इनकी संख्या सीमित है.
कंपनी पर करोड़ों का कर्ज
गौरतलब है कि पवन हंस के विनिवेशीकरण की दो बार कोशिश हो चुकी है, लेकिन सरकार को इसमें सफलता नहीं मिली है. वहीं पवन हंस ने बयान में बताया कि 201-19 में उसे करीब 89 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, कंपनी पर 230 करोड़ रुपये के अलावा और भी कई देनदारियां बताई गई हैं.
प्रबंधन के इस फैसले के खिलाफ पवन हंस कर्मचारी संघ के यूनियन ने कहा कि कर्मचारियों के वेतन को रोकना अमानवीय है. कर्मचारियों के वेतन को अभी बढ़ाया जाना था और ऐसे में इसे रोक दिया गया है.
रणनीतिक बिक्री पर चुनाव तक रोक
वहीं पिछले हफ्ते सरकार ने पवन हंस की बिक्री प्रक्रिया चुनाव तक रोकने का फैसला किया. इसका कारण हेलिकॉप्टर सेवा प्रदाता को खरीदने को लेकर केवल एक निवेशक का वित्तीय बोली जमा करना है.
गौरतलब है कि सरकार की हेलिकॉप्टर सेवा प्रदाता पवन हंस में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है और शेष 49 प्रतिशत ओएनजीसी के पास है. निवेशकों के पास पवन हंस में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए वित्तीय बोली जमा करने को लेकर छह मार्च की समयसीमा थी.